निशान्त-लीला ५

निशान्त-काल में जागकर सखियां

ताके वृन्दा-देवी की ओर,

“रति-रस आलस में सोये हैं दोनों,

तुरन्त जगाओ, हो गयी भोर !

 

जाओ, जाओ, करो प्रयास !

राई को जगा कर ले जाओ घर,

अन्यथा होगा सर्वनाश !”

 

शरी-शुक पपीहा और सभी पंछी,

मीठे धुन से दिया जगाई,

“जटीला आसमान[1]” सभीने कहा,

तो चमक उठी राई ।

 

वृन्दा के आदेश से सभी पक्षी

मधुर मधुर करे भाष[2],

मन्दिर-बाहर[3] झारी ले कर ठहर

देखत गोविन्द दास ।



[1]आकाश में सूर्य की लाल लपटें ऐसी प्रतीत होती हैं मानो जटायें हैं ;  इसलिये पंछी आकाश को ‘जटीला’ कह रहे हैं । किन्तु उनका अभिप्राय आकाश को वर्णन करना नहीं, अपितु किशोरी जु के मन में डर पैदा करना है ।

[2]सम्भाषण

[3]कुंज-मन्दिर के बाहर