निशान्त लीला ११

११

तथा राग

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वक़्त जानकर आयीं सखिगण,

दोनों को देख हुयीं आनन्द-मगन ।

 

सखियों की सेवा कहन न जाय,

चांद की मेला[1] वर्णण न जाय ।

 

नीलगिरि को घेरे कनक की माला[2],

गोरी-मुख सुन्दर झलके रसाला ।

 

कक्खटी वानरी करे शोर नाद,

गोविन्द दास कहे, “हुआ प्रमाद[3] !”



[1] सखियां इतनी सुन्दर हैं कि ऐसा लग रहा है मानो युगल-किशोर के चारों तरफ चांद की मेला है ।

[2] किशोरीजु श्यामसुन्दर के गले में बाहें डाली हुयीं हैं, और दोनों इस तरह एक दूजे से लिपटे हुयेले को लगता है जैसे नीलगिरि (श्यामसुन्दर) को कनक की माला (स्वर्ण-वर्णा किशोरीजु) घरी हुई है ।

[3] गलती ; युगल-किशोर का वक़्त पर न जागना गलत बात है ।