निशान्त लीला १२, १३, १४

१२

राग विभाव ललित

ढूंढ़ती हुईं मैया जसोमती,

आयीं कुंज-कुटीर,

दक्ष-विचक्षण[1] ने खबर दी,

चौंक उठे गोकुल-वीर ।

 

हरि ! हरि !

अब भी नींद नहीं खुली !

प्रीतम की गोद को आग़ोश में लेकर

शरम से नयन मूंद ली ।

 

रति-रस रंजित रतिया बितायी,

कैसे जागना होवे ?

विलास-थकान से चूर हैं दोनों,

अंखिया न खोल पावे ।

 

रति-रस-आवेश-कलेवर[2] नागर,

उठ रहे ज़रा ज़रा ,

प्राण-प्यारी का वदन निहारकर

फिर से हुये भोरा[3]

 

राई-वदन घन[4] चूमे प्यार से,

कातर-हृदय मुरारी,

नयन के नीर[5] शयन भिगाये,

देख बलराम बलिहारी[6] !

 



[1] तोतों के नाम हैं ।

[2] रति-रस के आवेश में नागर अर्थात कन्हैयाजु का कलेवर, (शरीर) थका हुआ है ।

[3] विभोर ; मग्न

[4] घन – बारबार

[5] आंसू से शय्या को भिगा रहे हैं ।

[6] इस प्रेमभरे दृश्य को देखकर सन्त बलराम दास युगल की बलैयां ले रहे हैं ।

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१३

तथा राग

वृन्दावन में शुक-शारी-कोकिल

और भ्रमर करे मंगल-गान,

कबूतर टेरत, “दसों दिशा में

पसरा सूर्य का निशान ।“

 

हरि ! हरि !

कोई नहीं सुनता मेरी !

प्रभात हुआ, फिर भी न जागे,

सो रहे किशोर-किशोरी !!

 

बूझ गया दीप, मलिन हिमकर[1],

आकाश हुआ गुलाबी,

कुमुदिनी छोड़, नलिनी गण ओर

भागे मधुकर शराबी ।

 

“मन्दिर सूना देख यशोमती,

आ रहीं विपिन[2] की ओर”[3],

ललिता की मीठी वाणी

सुन बलराम हुआ विभोर ।

 

[1] हिमकर अर्थात चन्द्र फीका हो गया ।

[2] वन

[3] कन्हैया जु को डराने के लिये ललिता ऐसा कह रही है ।

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१४

राग तोड़ी

मधुकर-मधुकरी[1], वन में झंकार भरी,

कूजे कोकिल-वृन्द,

सुन ले अंगड़ाई, गोरी पुनः सो गई,

मूंद कर नयनारविन्द[2]

 

“जागो प्राण प्यारी !

सुधाकर[3] भागे, गुरुजन जागे,

ननदिनी[4] देगी गारी[5] !

 

जटिला-सासू, आंसू बहावई,

ढूंढे जमुना-तीर !”

शारी-वचन सुन चौंक उठी धनी,

लुढ़क कर गिरे, होवे अधीर ।

 

तुरन्त सखियां पहुंची वहां,

और जगाईं आभूषण-बोल[6],

बलराम देखे, जागकर उठे,

तन ढंके दोनों निचोल[7]

 



[1]भ्रमर-भ्रमरी

[2]कमल जैसी आंखें

[3]चन्द्र

[4]ननद (कुटीला)

[5]गाली

[6]ब्रज में आभूषण भी चिन्मय हैं, अतः वे बोलते हैं । सखियों ने युगल को जगाने के लिये उन से बुलवाया ।

[7]सन्त बलराम दास ने देखा कि दोनों, निचोल अर्थात दुपट्टे से तन को ढंके ।