१२
राग विभाव ललित
ढूंढ़ती हुईं मैया जसोमती,
आयीं कुंज-कुटीर,
दक्ष-विचक्षण[1] ने खबर दी,
चौंक उठे गोकुल-वीर ।
हरि ! हरि !
अब भी नींद नहीं खुली !
प्रीतम की गोद को आग़ोश में लेकर
शरम से नयन मूंद ली ।
रति-रस रंजित रतिया बितायी,
कैसे जागना होवे ?
विलास-थकान से चूर हैं दोनों,
अंखिया न खोल पावे ।
रति-रस-आवेश-कलेवर[2] नागर,
उठ रहे ज़रा ज़रा ,
प्राण-प्यारी का वदन निहारकर
फिर से हुये भोरा[3] ।
राई-वदन घन[4] चूमे प्यार से,
कातर-हृदय मुरारी,
नयन के नीर[5] शयन भिगाये,
देख बलराम बलिहारी[6] !
[1] तोतों के नाम हैं ।
[2] रति-रस के आवेश में नागर अर्थात कन्हैयाजु का कलेवर, (शरीर) थका हुआ है ।
[3] विभोर ; मग्न
[4] घन – बारबार
[5] आंसू से शय्या को भिगा रहे हैं ।
[6] इस प्रेमभरे दृश्य को देखकर सन्त बलराम दास युगल की बलैयां ले रहे हैं ।
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१३
तथा राग
वृन्दावन में शुक-शारी-कोकिल
और भ्रमर करे मंगल-गान,
कबूतर टेरत, “दसों दिशा में
पसरा सूर्य का निशान ।“
हरि ! हरि !
कोई नहीं सुनता मेरी !
प्रभात हुआ, फिर भी न जागे,
सो रहे किशोर-किशोरी !!
बूझ गया दीप, मलिन हिमकर[1],
आकाश हुआ गुलाबी,
कुमुदिनी छोड़, नलिनी गण ओर
भागे मधुकर शराबी ।
“मन्दिर सूना देख यशोमती,
ललिता की मीठी वाणी
सुन बलराम हुआ विभोर ।
[1] हिमकर अर्थात चन्द्र फीका हो गया ।
[2] वन
[3] कन्हैया जु को डराने के लिये ललिता ऐसा कह रही है ।
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१४
राग तोड़ी
मधुकर-मधुकरी[1], वन में झंकार भरी,
कूजे कोकिल-वृन्द,
सुन ले अंगड़ाई, गोरी पुनः सो गई,
मूंद कर नयनारविन्द[2] ।
“जागो प्राण प्यारी !
सुधाकर[3] भागे, गुरुजन जागे,
जटिला-सासू, आंसू बहावई,
ढूंढे जमुना-तीर !”
शारी-वचन सुन चौंक उठी धनी,
लुढ़क कर गिरे, होवे अधीर ।
तुरन्त सखियां पहुंची वहां,
और जगाईं आभूषण-बोल[6],
बलराम देखे, जागकर उठे,
तन ढंके दोनों निचोल[7] ।