६
राग ललित
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वृन्दा की बातें सुन, सारे पक्षी-कुल
करत कूजन हो कर आकुल ।
शारी-शुक और कोयल करे कूजन,
कबूतर पुकारे, भौंरे करें गुंजन ।
“मौरि” “मौरि”[1] ध्वनि कर्ण-रसाल,
उस पर वानर का रव – सुविशाल ।
वन में इतना शोर सुनकर,
जाग गये दोनों नागरी-नागर ।
प्रेमालस में न छोड़े एक दूजेको
न ही त्यजे पुष्प-पलंग को ।
शारी-शुक फिर से पुकार कर,
दोनों को जगाये, रस बरसाकर ।
कब बलराम सुनेगा यह कूजन ?
करेगा राधा-माधव का अमृत-दर्शन ?