निशान्त लीला – ७

राग विभाव

वृन्दा की बातों से प्रोत्साहित होकर

शुक-शारी-पपीहा पुनः पुकारे,

सुनकर जागे दोनों, फिर से सो गये

प्रिया को गोदी से न उतारे ।

 

“हरि ! हरि !

जागो नागर कान्हा,

इस पापी विधि ने बड़ा दुख दीन्हा,

कियो निशि अवसाना ।

 

वह देखो आयीं ब्रज-महेश्वरी,

बुला रही दधि-भाण्ड लेकर !”

सुनकर दुखी हुए विदग्ध नागर

देखे कमल-नयन खोलकर ।

 

नागरी देखकर पुनः मुंदी आंखें,

पुलकित हो गये अंग ;

देख बलराम सुख-सागर में

डूब गया रंग-तरंग ।