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राग विभाव
वृन्दा की बातों से प्रोत्साहित होकर
शुक-शारी-पपीहा पुनः पुकारे,
सुनकर जागे दोनों, फिर से सो गये
प्रिया को गोदी से न उतारे ।
“हरि ! हरि !
जागो नागर कान्हा,
इस पापी विधि ने बड़ा दुख दीन्हा,
कियो निशि अवसाना ।
वह देखो आयीं ब्रज-महेश्वरी,
बुला रही दधि-भाण्ड लेकर !”
सुनकर दुखी हुए विदग्ध नागर
देखे कमल-नयन खोलकर ।
नागरी देखकर पुनः मुंदी आंखें,
पुलकित हो गये अंग ;
देख बलराम सुख-सागर में
डूब गया रंग-तरंग ।