निशान्त लीला – ९

राग रामकेलि

हिमकर[1] हुआ मलिन[2], नलिन[3] गण हंसे

देख अरुण-किरण[4] विभोर[5],

कोकिल[6] बोले[7], और आकुल भ्रमर-कुल,

त्यजे कुमुदिनी-क्रोड़[8]

 

चौंक कर कहे शुक-शारी की जोड़ी,

“देखो, कैसे सो रहे किशोर-किशोरी !”

 

किशलय पर निश्चल श्याम-तन,

लगे जैसे मरकत[9]-मणि,

सुन्दरी हमारी राई-किशोरी,

चमके कांचन[10] सी धनी ।

 

कुसुम-शर-तूण शून हुआ,

दोनों हुये रति-रस में विभोर,

सखियां आकर कुंज-मन्दिर में,

कहे – “गोरी ! हो गया भोर !

 

दस दिशाएं आलोकित हुईं,

अब तो जागो, सुन्दरी राधा !”

कहे गोविन्द दास होकर दुखी,

“किसने डाला रस में बाधा ?”



[1] चन्द्र

[2] चांद का रंग फीका हो गया; वह अस्त जाने लगा ।

[3] कमल

[4] सूर्य की पहली किरण

[5] कमल गण सूरज की पहली किरणों को विभोर होकर देख रहे हैं और खुश होकर हंस रहे हैं ।

[6] कोयल

[7] कोकिल बोलने लगे ।

[8] क्रोड़ – गोदी ; रात में भ्रमर-परिवार कुमुदिनी की गोदी में सो गये थे । चांद के अस्त जाने से कुमुदिनी बन्द हो जाते है, इसलिये भौंरे सांस नहीं ले पाते  और आकुल होकर बाहर आ जाते हैं ।

[9] पन्ना

[10] सोना