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राग रामकेलि
हिमकर[1] हुआ मलिन[2], नलिन[3] गण हंसे
कोकिल[6] बोले[7], और आकुल भ्रमर-कुल,
त्यजे कुमुदिनी-क्रोड़[8] ।
चौंक कर कहे शुक-शारी की जोड़ी,
“देखो, कैसे सो रहे किशोर-किशोरी !”
किशलय पर निश्चल श्याम-तन,
लगे जैसे मरकत[9]-मणि,
सुन्दरी हमारी राई-किशोरी,
चमके कांचन[10] सी धनी ।
कुसुम-शर-तूण शून हुआ,
दोनों हुये रति-रस में विभोर,
सखियां आकर कुंज-मन्दिर में,
कहे – “गोरी ! हो गया भोर !
दस दिशाएं आलोकित हुईं,
अब तो जागो, सुन्दरी राधा !”
कहे गोविन्द दास होकर दुखी,
“किसने डाला रस में बाधा ?”
[1] चन्द्र
[2] चांद का रंग फीका हो गया; वह अस्त जाने लगा ।
[3] कमल
[4] सूर्य की पहली किरण
[5] कमल गण सूरज की पहली किरणों को विभोर होकर देख रहे हैं और खुश होकर हंस रहे हैं ।
[6] कोयल
[7] कोकिल बोलने लगे ।
[8] क्रोड़ – गोदी ; रात में भ्रमर-परिवार कुमुदिनी की गोदी में सो गये थे । चांद के अस्त जाने से कुमुदिनी बन्द हो जाते है, इसलिये भौंरे सांस नहीं ले पाते और आकुल होकर बाहर आ जाते हैं ।
[9] पन्ना
[10] सोना