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राग ललित भैरवी
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श्याम सु-नागर[1], मदन-मत्त[2] कुञ्जर[3],
ऐसो कियो रस-उन्माद[4] में,
किशोरी हमारी ननी[5] की गुड़िया,
मुरझा गई रति-अवसाद[6] में ।
हरि हरि !
कैसे लौटेगी धनी घर ?
निधुवन-युद्ध[7] में हारकर गोरी
सो गयी दुर्बल होकर ।
घनघन चुम्बन, दृढ़ आलिंगन,
कियो श्याम प्रेम भरपूर,
अवश गोरी, उठ न पाये,
होकर रति-रस-चूर ।
श्याम भयो उन्मत्त ऐसो
करे सुदृढ़ परिरम्भण[8],
अम्बर केश[9], सम्बर न सके,
शरमा कर मुंदई नयन ।
निर्दयी नाथ फिर भी न छोड़े,
बांध लिये पुनः भुज-पाश[10],
गल-बहियां डाल सो गई हिय पर[11],
क्या करे बलराम दास ?
[1] Expert lover
[2] Love-intoxicated
[3]हाथी
[4]प्रेम-रस में दीवाना होकर
[5]मक्खन
[6]रति-विलास से थक गई
[7]श्यामसुन्दर और किशोरीजु निधुवनमें रति-विलासमें मग्नहैं ; इसीको रति-युद्ध भी कहा गया है ।
[8]आलिंगन के साथ साथ रति-क्रियाकलाप
[9]अम्बर = वस्त्र ; किशोरीजु वस्त्र और केश दोनों ‘सम्बर’ अर्थात सम्भल नहीं पाईं, और दोनों खुल गये ।
[10]बांहों के बन्धन में
[11]किशोरीजु थक कर श्यामसुन्दर के ‘हिय’ अर्थात हृदय पर सर रख कर सो गई ।