निशान्त-लीला – ३

राग ललित भैरवी

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श्याम सु-नागर[1], मदन-मत्त[2] कुञ्जर[3],

ऐसो कियो रस-उन्माद[4] में,

किशोरी हमारी ननी[5] की गुड़िया,

मुरझा गई रति-अवसाद[6] में ।

 

हरि हरि !

कैसे लौटेगी धनी घर ?

निधुवन-युद्ध[7] में हारकर गोरी

सो गयी दुर्बल होकर ।

 

घनघन चुम्बन, दृढ़ आलिंगन,

कियो श्याम प्रेम भरपूर,

अवश गोरी, उठ न पाये,

होकर रति-रस-चूर ।

 

श्याम भयो उन्मत्त ऐसो

करे सुदृढ़ परिरम्भण[8],

अम्बर केश[9], सम्बर न सके,

शरमा कर मुंदई नयन ।

 

निर्दयी नाथ फिर भी न छोड़े,

बांध लिये पुनः भुज-पाश[10],

गल-बहियां डाल सो गई हिय पर[11],

क्या करे बलराम दास ?



[1] Expert lover

[2] Love-intoxicated

[3]हाथी

[4]प्रेम-रस में दीवाना होकर

[5]मक्खन

[6]रति-विलास से थक गई

[7]श्यामसुन्दर और किशोरीजु निधुवनमें रति-विलासमें मग्नहैं ; इसीको रति-युद्ध भी कहा गया है ।

[8]आलिंगन के साथ साथ रति-क्रियाकलाप

[9]अम्बर = वस्त्र ; किशोरीजु वस्त्र और केश दोनों ‘सम्बर’ अर्थात सम्भल नहीं पाईं, और दोनों खुल गये ।

[10]बांहों के बन्धन में

[11]किशोरीजु थक कर श्यामसुन्दर के ‘हिय’ अर्थात हृदय पर सर रख कर सो गई ।