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राग विभाव
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मिट गया चन्दन, टूट गये आभूषण,
छूट गया कुन्तल[1]-बन्धा,
अम्बर[2]स्खलित, गलित कुसुमावली[3],
धुंधला दोनों मुखचन्दा ।
हरि ! हरि ! क्या कहूं ?
अब दोनों किशोरी-किशोर,
दोनों के स्पर्श-रभस[4] से दोनों मूर्छित,
सोये हैं हिय-हिय[5] जोड़ ।
राई की बायीं जांघ पर नागर
दबाये दायें चरण से,
लाडिली को आगोश में लेकर
ढंके मुख को मुख से ।
सुन्दरी स्वयं मदन-बाण हैं,
भेद गयी प्रीतम के दिल को,
कब बलराम देखेगा नयन भर,
तरसे हृदय अमृत दर्शन को !