निशान्त-लीला ४

राग विभाव

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मिट गया चन्दन, टूट गये आभूषण,

छूट गया कुन्तल[1]-बन्धा,

अम्बर[2]स्खलित, गलित कुसुमावली[3],

धुंधला दोनों मुखचन्दा ।

 

हरि ! हरि ! क्या कहूं ?

अब दोनों किशोरी-किशोर,

दोनों के स्पर्श-रभस[4] से दोनों मूर्छित,

सोये हैं हिय-हिय[5] जोड़ ।

 

राई की बायीं जांघ पर नागर

दबाये दायें चरण से,

लाडिली को आगोश में लेकर

ढंके मुख को मुख से ।

 

सुन्दरी स्वयं मदन-बाण हैं,

भेद गयी प्रीतम के दिल को,

कब बलराम देखेगा नयन भर,

तरसे हृदय अमृत दर्शन को !



[1]जुड़

[2]वेश

[3]फुलों की माला

[4]रति-उत्तेजना मिश्रित आनन्द

[5]हृदय