चरनन रज माँगत

 

 

Sri Sri Radha Raman jiu

छबीले, मुरली नैक बजाउ।
बलि बलि जात सखा यह कहि कहि, अधरसुधा रस प्याउ ॥

दुरलभ जनम लहब बृंदाबन, दुरलभ प्रेम तरंग।
ना जानिए बहुरि कब ह्वै है स्याम ! तिहारौ संग ॥

बिनती करत सुबल श्रीदामा, सुनै स्याम दै कान।
या रस कौ सनकादि सुकादिक करत अमर मुनि ध्यान ॥

कब पुनि गोप भेष ब्रज धरिहौ, फिरिहौ सुरभिनि साथ।
अपनी अपनी कंध कमरिया, ग्वालनि दई डसाइ।
सौंह दिवाइ नंद बाबा की रहे सकल गहि पाइ ॥

सुनि सुनि दीन गिरा मुरलीधर चितए मृदु मुसकाइ।
गुन गंभीर गुपाल मुरलि प्रिय लीन्ही तबै उठाइ ॥

धरि कैं अधर बैंन मन-मोहन कियौ मधुर धुनि गान।
मोहे सकल जीव जल थल के, सुनि वारे तन पान ॥

चलत अधर भृकुटी कर पल्लव, नासा पुट जुग नैन।
मानो नर्तक भाव दिखावत, गति लै नायक मैन ॥

चमकत मोर चंद्रिका माथे, कुंचित अलक सुभाल।
मानौ कमल कोष रस चाखन उडि आई अलि माल ॥

कुण्डल लोल कपोलनि झलकत, ऐसी सोभा देत।
मानौ सुधा सिंधु मैं क्रीडत मकर पान के हेत ॥

उपजावत गावत गति सुंदर, अनाघात के ताल।
सरबस दियौ मदन मोहन कौं प्रेम हरषि सब ग्वाल ॥

लोलित बैजंती चरनन पै, स्वासा पवन झकोर।
मनो गरबि सुरसरि बहि आई ब्रह्म कमंडल फोरि ॥

डुलति लता नहिं, मरुत मंद गति सुनि सुंदर मुख बैन।
खग, मृग, मीन अधीन भए सब, कियौ जमुन जल सैन ॥

झलमलाति भृगु पद की रेखा, सुभग साँवरे गात।
मनु षट बिधु एकै रथ बैठे, उदै कियौ अधिरात ॥

बाँके चरन कमल, भुज बाँके, अवलोकनि जु अनूप।
मानौ कलप तरोवर बिरवा अवनि रच्यौ सुर भूप ॥

अति सुख दियौ गुपाल सबनि कौ, सुखदायक जिय जान |

सूरदास चरनन रज माँगत, निरखत रुप निधान ॥