मेरे प्राण-गौरांग


ऐसी पिलायी तुने साक़ी गोरा, कुर्बान हो चुके हम,

अब तक रहे जो बाकी, गोरा, अर्मान खो चुके हम ।

 

पहला ही गौर-जाम भरकर ऐसा हमें पिलाया,

सारी अक्ल-हुनर को गोरा,  नादान खो चुके हम ।

 

तेरे मुकाबले का, गोरा, नहीं हुस्न है किसी का,

जलती हुई शमा पर गोरा, परवाने बन गये हम ।

 

बिल्कुल नहीं रहे अब गोरा, दुनियां के काम के कुछ,

बस अब तो तेरे दर के गोरा, मेहमान हो चुके हम ।

 

सौदा ही है ये ऐसा गोरा, किसकी समझ में आये ?

पीकर के खुद ही देखो गोरा, ऐलान कर चुके हम  !

 

रहती हवस यह दिल में गोरा, भर भर के जाम पियें,

इन्कार तुम न करना गोरा, इक़रार कर चुके हम ।

4 thoughts on “मेरे प्राण-गौरांग

  1. Radhe Radhe! Wah wah! Nice poem! But Gora doesn’t accept madhurya-bhav…he’s a sannyasi! 😛 Yeah…though what keeps going inside is different case! 😆
  2. नाम करते हो तुम बाहर, मियां, अन्दर की बात है दफन, हमराज़ बनना चाहते हो अगर, नमन करो बासु और लोचन । राधे राधे !
  3. इन्कार तुम न करना गोरा, इक़रार कर चुके हम । Gora itna nasha mein hai ke inkar ka bhaan kaha , just ikrar karte jao . any way nice poem Gora gora

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