१५
राग रामकेलि
सखियों को देख कमल-मुखी,
शरमाकर आधा मुख ढंकई,
हरि-मुख-चन्द्र निहारई ।
माधवी लता के घर में,
बैठे रसवती और रसराज,
कुसुम-केलि-शय्या[3] पे दोनों विराजे,
चारों तरफ रंगिनी-समाज[4] ।
गोरी के … Read more >
१५
राग रामकेलि
सखियों को देख कमल-मुखी,
शरमाकर आधा मुख ढंकई,
हरि-मुख-चन्द्र निहारई ।
माधवी लता के घर में,
बैठे रसवती और रसराज,
कुसुम-केलि-शय्या[3] पे दोनों विराजे,
चारों तरफ रंगिनी-समाज[4] ।
गोरी के … Read more >
१२
राग विभाव ललित
ढूंढ़ती हुईं मैया जसोमती,
आयीं कुंज-कुटीर,
दक्ष-विचक्षण[1] ने खबर दी,
चौंक उठे गोकुल-वीर ।
हरि ! हरि !
अब भी नींद नहीं खुली !
प्रीतम की गोद को आग़ोश में लेकर
शरम से नयन मूंद … Read more >
११
तथा राग
—————-
वक़्त जानकर आयीं सखिगण,
दोनों को देख हुयीं आनन्द-मगन ।
सखियों की सेवा कहन न जाय,
चांद की मेला[1] वर्णण न जाय ।
नीलगिरि को घेरे कनक की माला[2],
गोरी-मुख सुन्दर झलके रसाला … Read more >
८
राग कौराग
आहिस्ता छोड़ गोरी उठ बैठी,
नागर-राज भी जागे,
वह सुख पाने, फिर से नागरी,
सो गयी उनकी आग़ोश में ।
हरि ! हरि !
अब सुख-यामिनी-शेष,
रति-रस-भोरी[1] गोरी जोड़ी[2] सो गयी,
विगलित वसन और केश … Read more >
७
राग विभाव
वृन्दा की बातों से प्रोत्साहित होकर
शुक-शारी-पपीहा पुनः पुकारे,
सुनकर जागे दोनों, फिर से सो गये
प्रिया को गोदी से न उतारे ।
“हरि ! हरि !
जागो नागर कान्हा,
इस पापी विधि ने बड़ा दुख दीन्हा,… Read more >
६
राग ललित
—————–
वृन्दा की बातें सुन, सारे पक्षी-कुल
करत कूजन हो कर आकुल ।
शारी-शुक और कोयल करे कूजन,
कबूतर पुकारे, भौंरे करें गुंजन ।
“मौरि” “मौरि”[1] ध्वनि कर्ण-रसाल,
उस पर वानर का रव – … Read more >
५
निशान्त-काल में जागकर सखियां
ताके वृन्दा-देवी की ओर,
“रति-रस आलस में सोये हैं दोनों,
तुरन्त जगाओ, हो गयी भोर !
जाओ, जाओ, करो प्रयास !
राई को जगा कर ले जाओ घर,
अन्यथा होगा सर्वनाश !”
शरी-शुक … Read more >
४
राग विभाव
—————
मिट गया चन्दन, टूट गये आभूषण,
छूट गया कुन्तल[1]-बन्धा,
अम्बर[2]स्खलित, गलित कुसुमावली[3],
धुंधला दोनों मुखचन्दा ।
हरि ! हरि ! क्या कहूं ?
अब दोनों किशोरी-किशोर,
दोनों के स्पर्श-रभस… Read more >