Malipada
श्री भगवान आचार्य का श्रीपाट मालीपाडा में स्थित है | पुरी में इसी श्री भगवान दास के कुटीर में छोटो हरिदास वाली घटना घटी थी |
चूंचुडा रेल स्टेशन या वहाँ के बस स्टैंड से तारकेश्वर की बस पकड़िये | सेनेट नाम के स्टॉप पर उतरिये | फिर वहाँ से तारकेश्वर-पांडुआ १७/१८ नंबर बस लीजिये और मालीपाड़ास्टॉप पर उतरिये |
भगवान आचार्यमहाप्रभु के पार्षद थे | यद्यपि वे गृहस्थ थे, उनका विषय के प्रति प्रबल वैराग था | महाप्रभु की ईच्छा से उन्होंने विवाह किया | उनकी पत्नी का नाम श्रीमती कमला देवी | उनके दो पुत्र थे - रमानाथ और रघुनाथ | रघुनाथ की पहली पत्नी से उन्हें सात पुत्र प्राप्त हुए | उनकी सात हवेलियाँ हैं | रघुनाथ की दुसरी पत्नी से पांच पुत्र प्राप्त हुए | उनके नाम पांच हवेलियाँ हैं | दो काफी ऊंचे और आकर्षक मंदिर हैं | दोनों मंदिर भक्तों को अवश्य ही अच्छे लगेंगे | मूल मंदिर श्रीश्रीमदनगोपाल जी का है | वहीँ पर श्रीश्रीराधावल्लभ जी भी विराजमान हैं |
भगवान आचार्य के पूर्वज तांत्रिक थे | जब उन्होंने महाप्रभु का आश्रय ग्रहण किया, तब उन्होंने पूछा कि, "हम इतने वर्षों तक वंश-परम्परा से शक्ति की उपासना करते आये हैं | अब इन चित्रों तथा घट का क्या होगा ?" तब महाप्रभु ने कहा - "इसमें तनिक भी चिंता का विषय नहीं | यह शक्ति अघटन-घटन-पटीयसीयोगमाया की बहिरंगा रूप है | उन्हें गंगाजी में मत बहाओ | वे श्री कृष्ण-लीला की सहायिका हैं | तुम इन्हें योगमाया समझकर पूजा करो |" इसीसे ज्ञात होता है कि वैष्णव धर्म बड़ा उदार है | इसकी कोई तुलना नहीं | यह कभी किसी धर्म या सम्प्रदाय को आहत नहीं करता | कितना आश्चर्य की बात है ! आज भी वही ५०० वर्ष पुराना घट की पूजा हो रही है | ऐसा दृश्य आपको कहाँ देखने को मिलेगा ? यहाँ एक "काली-यंत्र" भी है | इस मंदिर में गोपाल-मूर्ती विराजमान हैं |
वैसे तो, जैसे ही आप प्रवेश करेंगे, पहले श्रीश्रीराधाकांत जी का दर्शन होगा | श्रीकृष्ण के दक्षिण में राधारानी और बांयी तरफ बोड़ाल-राजा की बेटी है | घटना ऐसी है, कि, एक दिन बोड़ाल राजा अपनी ९ वर्षीया इकलौती बेटी को लेकर मंदिर दर्शन के लिए आये थे | वहाँ बेटी का अकस्मात् देहांत हो गया | राजा बेहोश होकर गिर पड़े | वे चीख उठे - "भगवान् ! तुमने यह क्या किया ? क्या यही तुम्हारे दर्शन का परिणाम है ? लौटा दो मेरी बेटी को !" तब गोविन्द ने कहा - "यह मेरी ईच्छा से हुआ है | तुम्हारी बेटी मरी नहीं है | मैंने उसे ग्रहण किया है | तुम अपनी बेटी की मूर्ती बनाकर मेरी बांयी तरफ रख दो | वहां उसकी पूजा होगी |" यहाँ लक्ष्मी-जनार्दन शिला भी दर्शनीय है |