वृन्दावन – १२

 

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गर्मी और बरसात के मौसम कितने मधुमय होते हैं । पेड़ और लताएँ , फल और फूलों से झुक जाते हैं । श्री कुण्ड के तट पर पेड़ खिल उठते हैं और सुन्दर दिखने लगते हैं । तोते और कोयल गाने लगते हैं। मोर मदहोश होकर नाचने लगते है । कहीं कहीं पक्षी ऊँची आवाज़ मे कलरव करते हैं । शाखाएँ एक दूसरे से जोड़कर मंडप का आकार लेती है । मत्त मधुकर विविध फूलों पे बैठकर गुंजन करते हैं। वे भी आनंद विभोर हो जाते हैं । शरद और सर्दी की शोभा भी देखते बनती है । हेमंत ऋतु और बसंत भी बहुत सुंदर होते हैं । मेरी प्राणेश्वरी सभी सखियों के साथ रंगन कुंज में जाकर उपस्थित होतीं हैं , और वृन्दा सबको होली की सामग्री दिखाती है ।

 

 

४०

 

 

वसंत लीला की प्रार्थना

 

ओ हेम गौरी, कब ऐसा दिन आएगा –  मैं तुम्हारी लीला-माधुरी का दर्शन करूँगी ? सौ सौ सखियों की यूथ अपनी अपनी युथेश्वरी के साथ वृन्दावन में प्रवेश करेंगी । उनका एक ही लक्ष्य है – आज कांत को ‘जय’ करेंगे । मदन की तरंगें उठ रहीं हैं । साथ में मृदंग, मोचंग, डफ लेकर सखियाँ जय-ध्वनी करतीं हुईं प्रवेश करती हैं । तुम्हें देखकर कृष्ण सीना तानकर ललकारेंगे, “आओ धनी !  हम लोगों के सा थहोली खेलो !”  

 

यह सुनकर सिल्क का आंचल दांत में दबाकर तुम मीठे स्वर में मुस्कुराती हुई कहोगी, “ सुनो हरुवा[1] नागर, मेरी बातों को ध्यान से सुनो । इतना अहंकार क्यों करते हो ? मेरी किंकरियों के हाथों पहले भी तुम सौ सौ बार हार चुके हो । फिर भी तुम्हें शरम नहीं आती ?”  यह कहकर तुम श्यामसुंदर के वक्ष को लक्ष्य बनाकर फूलों की गेंद फेंकोगी । मैं पिचकारी में चंदन, कुंकुम और केसर पानी भरकर तुम्हारे हाथों में दूँगी । छोटे छोटे पाकिटों में रंगीन गुलाल भरकर तुम्हारे हाथों में पकड़वाऊंगी । पुलकित होकर तुम्हारे सुंदर हाथों में ये सामग्रियाँ देती रहूँगी ।

 

हे रंगिनी, तुम रंगीन जल और सुरंगित गुलाल जल से उस सुरंग नागर को रंगा दोगी । फिर नागर रसिकिनी राई और दूसरी सखियों के साथ बैठेगा । वे रंग-समुद्र के तरंगों में ड़ूब जाएँगे । हाय ! कब वह दिन आएगा जब यह कृष्ण दास भी उस रंग-तरंग में रंगीन होकर उस रस सागर में डूबेगा ?

 

 ४१

 

हे धनी, तुम नागर के साथ होली खेलोगी । कब मस्ती से झूमती हुई वह लीला माधुरी देख पाऊँगी ? वह चालाक बटु, मधुमंगल, कहेगा – “ सुनो हे ललिते , आज हम लोगों के संग खेलो । देखूँगा कौन जीतता है !”  प्यारी ललिता जवाब देगी – “सुन बेशर्म बटु, तू है कपट चूड़ामणि । तू और तेरा यह  सखा –  कल इसी ललिता के हाथों हारकर भागा था, इसी होली खेल में ।”

 

यह सुनकर धनी मुस्कुराती है और नागर के वक्ष में रंग भरे गुबारे मारती है । मैं पुलकित होकर मणिमय पिचकारी में रंगीन पानी भरकर तुम्हारे सुन्दर हाथों में दूँगी । तुम पिचकारी से नागर पर रंगीन पानी का धार फेकोगी । सुन्दर नागर अपने सखाओं के साथ दौड़कर भागेगा । सब सखियाँ गोपीनाथ को घेर लेंगी । उन्हें पकड़कर तुम्हारे सामने लाएँगी । तुम उनके सुंदर मुख पर अच्छे से गुलाल पोत दोगी । सखियाँ जोर जोर से तालियाँ पीटेंगी और हसेंगी । वे कहेंगी – “हो हो होली, आज तो बहुत अच्छा होली हुआ !!!”



[1][1][1] जो हमेशा हार जाता है