वृन्दावन – १,२

|| श्री श्री वृन्दावनेश्वर्यै नमः ॥

वृन्दावनेश्वरी वयो गुण रूप लीला ,

सौभाग्य केलि करुणा जलधे’वधेहि ।

दासी भवानि सुखयानि सदा सकांतां ,

 त्वां आलिभिः परिर्वृतां इदमेव याचे ॥

हाय हाय मेरे वृन्दावनेश्वरी , तुम्हारे वय, रूप , गुण और लीला का क्या बखान करूँ !! तुम तो सौभाग्य, प्रेम केली और करुणा का महा सागर हो । मै तुम्हारे चरणों में कुछ विनती करती हूँ  ; कृपा कर तुम मेरी तरफ देखो । मैं तुम्हारे प्रियतम के संग युगल चरणों की सेवा करना चाहती हूँ । मुझे सिर्फ इतना वरदान दे दो, हे प्राणेश्वरी । मैं सेवा कर के सुख देना चाहती हूँ । सिर्फ यही मेरे दिल की तमन्ना है । मेरे दिल में यह आस कब उठेगी कि मैं तुम्हारे दुःख मे दुःखी हूँ और तुम्हारे सुख मे सुखी ? ये बड़ी ही विचित्र आशा है और ऐसा लगता है जैसे कि कोई बौना चांद को पकड़ना चाहता हो । पर तुम तो करुणा का महा सागर हो , इसलिए ऐसी आशा करने की हिम्मत कर रही हूँ। हे मेरे हेम गौरी, दीन कृष्णदास की यह आशा पूरण करो  ।

 

हे वृन्दावनेश्वरी, रात्री की अंतिम घड़ी है । मेरे धनी , तुम  निकुंज भवन में रत्न पलंग पर रस आलस के मारे श्याम नागर की आग़ोश में सोई हो । नागर के दक्षिण जांघ पर तुम्हारा रातुल चरण है । दोनों का हृदय एक दूसरे पर है । और तुम एक दूसरे की बाहों में सोये हो । चहरे को चहरा ढंक रहा है । हाय हाय सुवदनी ! कब मैं इस सुन्दर दृश्य को देखूँगी ? निकुन्ज में छोटी सी खिड़की होगी । उसमें लताओं की जाली लगी होगी । और इन जालियों में मैं तुम्हारे सखियों के संग ये सुन्दर दृश्य कब देखूँगी ?

2 thoughts on “वृन्दावन – १,२

  1. ऐसा लगता है जैसे कि कोई बौना चांद को पकड़ना चाहता हो ।
    It’s true—the līlā is anant-apār! It’s not so sahaj to attain it as many think! Even after knowing the means! But the essence of all one can do to attain it is definitely, floating on मीठी प्रार्थनाओं की लहरें ! 😀
  2. Radhe Radhe yeh rang aur noor ki duniya kise pesh karoon ? yeh murAdoN ki lafz kise pesh karoon ? yeh dard-e-dil ki karah kise pesh karoon ? O my mind, make these prayers your own, and drench them with aarti and utkaNThA.

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