राग भैरवी
सोये हैं गोराचांद विचित्र पलंग पर,
शयन-मन्दिर में शय्या अति मनोहर ।
प्रेमालस में अवश हैं नटराज गौर,
कैसे कहूं अंग-शोभा, शब्द नहीं और ।
मेघ[1] की बिजली[2] किसीने छानकर,
गोरा-अंग बनाया रस घोलकर … Read more >
राग भैरवी
सोये हैं गोराचांद विचित्र पलंग पर,
शयन-मन्दिर में शय्या अति मनोहर ।
प्रेमालस में अवश हैं नटराज गौर,
कैसे कहूं अंग-शोभा, शब्द नहीं और ।
मेघ[1] की बिजली[2] किसीने छानकर,
गोरा-अंग बनाया रस घोलकर … Read more >
कहे राई, ‘’यह रूप है बड़ा अपरूप,
साक्षात में होवे चमत्कार,
तरुण तमाल है क्या ? नवमेघ है क्या ?
क्या यह है इन्द्रनीलमणि ?
(कभी तो राधारानी पहले ही पहुंच जाती हैं और श्यामसुन्दर उनको पहचान नहीं पाते) –
वृन्दा कहे ‘कान, करो अवधान,
नागरी है सरसी कूल,
करने देवता-पूजन, लाई हूं करके जतन,
वह देखो बकुल-मूल’ !
सखी-संग चलीं राह पर राई बिनोदिनी,
विषाद से व्याकूल दिल, कहे कुछ वाणी ।
सुनकर तुलसी के वचन सखियां हुयीं प्रसन्न
चली करने सुर्य-पूजन,
विधि के अगोचर ऐसे उपहार लेकर
पूज-तैयारी में हुयीं मगन ।
तुलसी वहां आकर बताये सब खबर
सुनकर सुवदनी हरषाये,
राई कण्ठ में ललिता पहिनाये गुंजा-मालिका
कानों में चम्पक दिये ।
सौन्दर्य नहीं, अमृत-सिन्धु, उस तरंग का एक बिन्दु,
नाज़नीनों के चित्त को डूबाये।
कृष्ण की ये नर्म-कथाएं हैं सुधामय गाथाएं
तरुणियों के कानों को सुहायें ।
राधिका रूपसी साथ है तुलसी
कहे मधुर कथा
करो इसी क्षण कानन में गमन
नागर-शेखर यथा ।
माधव बैठे कुंड के तीर
सोच सोचकर सुन्दरी बाट देखें श्री हरि
बेचैन दिल न रहे स्थिर
अपरूप कुंड की शोभा राई-कानू मनोलोभा
चारों तरफ शोभे चार घाट
विविध रत्नों की छटा अपूर्व सीढ़ियों की घटा
स्फटिक मणियों से बना घाट ।