शय्या-सेवा की प्रार्थना

 

अटरिया पर सुन्दर बगीचा है । उसके बीचोबीच मैं आसन बिछाऊँगी । तुम सखियों के साथ खूशी से उसपर बैठोगी । कब वह दिन आएगा जब तुम्हारे मुख में ताम्बूल अर्पण करूँगी और तुम्हारे चरणों को वक्ष में धरकर संवाहन करूँगी ? श्यामसुंदर को गैया दोहते हुए देखकर तुम्हारे अंग में पुलक होगा । तुम आनंद विभोर हो जाओगी । कब दीन कृष्णदास उस प्रेम को देखकर सुखी होगा ? हे प्राणेश्वरी, जल्दी से मुझे अपने चरणों में स्थान दो ।

 

 

अहा धनी ! तुम्हारे प्रिय सखी रूप मंजरी जो बहुत ही खूबसूरत है, मुझे इशारे से कहेगी – ” जल्दी से जाओ और दिया-बत्ती सजाओ । ” उसकी आज्ञा सर माथे पर लेकर, मैं दिया लाऊंगी । उसमें सुगंधित तेल भरूँगी । बड़ी ही मनोहर बत्ती बनाऊंगी । फिर द्वार के बाहर और हर कमरे में दिया जलाऊँगी । मैं आनंदित होकर यह सभी सेवा करूँगी ।

 

सोने की गागर में जल भरकर लाऊँगी । उसमें कर्पूर मिलाकर भोजन मंदिर में रखूँगी । गागर को पतले कपड़े से ढँक दूँगी । इस तरह कितने ही गागर जल से भरकर लाऊँगी । इसी में चंदन मिलाऊँगी और चाँद के किरण तले रख दूँगी । ये जल प्रातः काल के सेवा में आएँगे । दिल में बड़ी तमन्ना लेकर कृष्णदास पूछ रहा है कि,  उसे यह सब सेवा कब मिलेगी ?

 

 

छत पर सुंदर शय्या होगी । ओ हेम गौरी, तुम उस पर सोई हुईं होंगी । कब वह शुभ दिन आएगा, जब तुम्हारे अंग से मैं कंचुकी और ओढ़नी को धीरे धीरे उतारूंगी ? और तुम्हारे पूरे अंग पर सुशीतल चंदन का लेप लगाऊंगी ? तुम्हारे लाल लाल चरण कमलों को पकड़कर धीरे धीरे संवाहन करूँगी । गुण मंजरी धीरे से पंखा करेगी । ये प्यार भरी और आनंदमयी सेवा हम कब करेंगी ? मेरे दुर्दिन जाएँगे और सुदिन आएँगे । कृष्णदास की यह आशा कब पूरी होगी?

 

 

ओ रंगिनी, तुम आलस के मारे छत पर सोई हुई होंगी । रसिक शेखर गौओं को दोहकर उन्हें और उनके बछड़ों को अपनी अपनी जगह रख देगा । फिर सख़ाओं से छल करके अर्थात झूठ बोलकर वह वहाँ से चला आएगा । जल्दी से वह तुम्हारे महल के छत पर चढ़ आएगा । उसे देखकर ललिता गौरी भौंहों को सिकुड़कर कहेगी – “सुन ओय चालाक नागर , तू अपने आप को क्या सोचता है ? तुझे कोई डर नहीं है क्या ? अभी अभी आयान यहाँ आ जाएगा । तब तू किधर भागेगा ? ऊपर से ये छोरी कुटीला है ना, ये तो हमेशा शक करती रहती है । और वह बुढ़िया जटिला – वह तो आसमान मे भी फंदा बिछाए रखती है !  बाकी गोपियाँ जो तुझसे प्रेम करती हैं – उनको तो बस राधा के चरित्र मे कोई छेद दिखने चाहिए । वे तुरंत तिल का ताल बना देंगी ।  वह छोरा दुर्मद  –  वह तो आग है आग !!  इसीलिए तो बिचारी राई हमेशा दूसरों की निगाह में खटकती रहती है । दिन रात लोग बिचारी पर शक करते रहते हैं । तुम बड़े निर्लज हो । तुम्हें तो कोई शरम है ही नहीं । तुम्हें सिर्फ़ अपने से मतलब है ।”

 

प्यारी ललिता की बातें सुनकर नागर उसके हाथ पकड़ लेते हैं । वे विनती करते हैं – “दया करो मुझपर, मुझे राई की चरण सेवा करने दो । हमेशा लिए मेरे दिल में  एक धड़कती है ; सुनो ललिता, तुम मुझे मत रोको । मैं तुम्हारे चरणों में विनती करता हूँ । मुझे राई की चरण सेवा करने दो ।“  यह सुनकर सब सखियाँ हँस पड़ती हैं । वे कहती हैं  -“ बड़ा रसिया है ।”  इस तरह  सबकी सम्मति मिल जाती है ।

 

श्री हरि प्यारी राधारानी के चरणों को पकड़कर हौले हौले संवाहन करता है । हे राधे, जब हरि तुम्हारे चरणों को छूते हैं, तब तुम्हारे अंग पर पुलक सा होता है । तुम कांप कर चौंक जाती हो । तुम्हारे होंठ गुलाबी हो जाते हैं । तुम्हारे अंग पर जैसे गुलाल छा जाता है । तुम भौंहों को सिकुड़कर नैनों के कोने से देखती हो । तुम उस श्यामविनोद की तरफ कटाक्ष पात करती हो । यह कृष्णदास कब यह मस्ती भरा दृश्य देख पाएगा ? क्या उसकी आशा कभी मिटेगी ?

 

 

वह देखिए, मधु मंजरी द्वार के पास आकर कह रही है – “सावधान ! आयान आ रहा है !”  हे धनी, यह सुनकर तुम बड़ी बड़ी आँखों से कन्हैया की तरफ देखती हो । यह देखकर श्यामनागर आनंद से विभोर हो जाते हैं । लेकिन फिर आयान का नाम सुनते ही वे काँप कर धरती पर गिर पड़ते हैं । तुम सती शिरोमणी हो । इसलिये तुम उसे गोदी में उठा लेते हो । ललिता समझ जाती है कि दोनों नाटक कर रहे हैं, और यह मधु मंजरी राधारानी की सिखाई हुई बात कह रही है । यह समझकर वह सखियों की तरफ इशारा करती है । इशारा पाते ही  सखियाँ बाहर चली जाती है । तुम श्यामनागर को बाहों में भरकर पलंग पर जाकर बैठ जाती हो और आनंद से सो जाती हो । तुम्हारे कर कमलों का स्पर्श पाकर नागर शेखर का होश लौट आता है । दोनों मस्ती भरी बातें करते हो । हँसी की लहरों में तैरते हो । तुम दोनों पलंक पर हो और यह कृष्णदास पंखा कर रहा है । कब यह आनंद भरा दिन आएगा ?

 

 

कुछ वक्त बीत जाने पर सखियाँ फिर से प्रसन्न वदन लेकर आ जाती हैं । दोनों को घेरकर सखियाँ बैठ जाती हैं । वे बड़ी ही चतूरा हैं । हे धनी, कब मेरा ऐसा नसीब होगा कि ललिता के इशारे को समझ सकूँगा ?

 

मैं पकवान लाकर दोनों को परसूँगी, और प्रेम से तुम दोनों को भोजन कराऊँगी । दोनों के मुख कमल को खुशबूदार जल से धुलाऊँगी । फिर पतले कपड़े से पोछूँगी । श्री रूप मंजरी दोनों के मुख में कर्पूर और तांबूल देगी । मैं अगुरू, चंदन और अत्तर से दोनों के अंग पर लेपन करूँगी । गुण मंजरी चंवर ढुलाएगी । यह नयी दासी युगल चरण कमल की सेवा करेगी । कब यह आनंद भरा दिन आएगा ? कृष्णदास हमेशा से यही अभिलाषा करता है । हे धनी, मेरी आशा को पूर्ण करो ।