राधा सरसी होकर हरषी
भवन में बैठीं बाला,
सुरस व्यंजन किया रन्धन,
भरईं[1] स्वर्ण-थाला ।
ढंककर वसन से रखकर जतन से
करने गयी स्नान,
दासियों के संग हुआ रस-रंग
करते हुये स्नान ।
अन्दर जाकर बहुत जतन कर
पहिना मोहन-वेश,
अट्टाली[2] पे उठकर फिराये नज़र
दिवस हुआ शेष ।
तुलसी लौटकर नज़र बचाकर
दिया लड्डू का थाल,
अगुरु चन्दन मधुर बीड़ा-पान,
और फूलों का माल ।
शेखर हरषी कहे, “ तुलसी ”,
लेकर उसका हाथ,
धनिष्ठा को लेकर आना चलकर
समझकर संकेत-बात ।
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देख दिन अवसान[3] चले चतूर कान
जा पहुंचे कदली[4] कानन,
सुबल मंगल संग करे नाना रस-रंग
कदली खाये प्रत्येक जन ।
मिलके सखाओंके साथ केले दिये सबके हाथ
खाये सब हरषित होकर;
पहनकर वन-फूल लपेटे रंगीन धूल
गैया को ले जाये घर ।
धेनु[5] बने घर-मुखी[6] चले होकर महा-सुखी
पूंछ अपनी ऊपर कर,
नाच-नाचकर जाये बच्चे पीछे धाये[7]
धूल से गगन गया भर ।
शिंगा लेकर दाऊ बुलाये सब गौ,
मदमस्त हुये सघन[8],
थिरक रहे चरन घूर्णित हैं नयन
गदगद न स्फुरे वचन ।
कमली बछिया स्कन्ध[9] चले मत्त गज छन्द[10]
जोर से बुलाये, ‘‘कानाई !”
कानू वेणू बजाये गैया को प्यार से बुलाये
ताकि एक भी वन में छूट न जाई ।
शिंगा-वेणू मिलकर छेड़े तान सुस्वर
सुने सब ब्रजलोक,
मैया-बापू हरषित कुलवती पुलकित
भूल गये सब दुःख-शोक ।
जब जाबट आया अपने अपने गैया
को लेकर गये गोपगण;
शेखर झट से कहा सुन्दरी से
“मिलो नागर से इसी क्षण” ।
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सुन्दरी हे ! देखो, वह रहा वनमाली !
दिवस के अन्त कामदेव-मूर्तिमन्त
जा रहे हैं नव-यौवनशाली !
तरुणी-लोचन ताप-विमोचन
हास्य सुधाकर-धारी
मन्द मुस्कान मोर-पिच्छ शान
उज्ज्वल नवल-विहारी ।
धेनू खूर-उद्धृत[11] रेणू परिप्लुत[12]
प्रफुल्लित कमल-मुख
केलि-मुरली बजावत रति-नयन फिरावत
दें यु्वती गण को सुख ।
चारु सनातन तन नयन-रस-रंजन
सखा संग आये,
राधिका-चातकी-नयन श्याम संग लड़ाये नयन
दिल में सुधा बरसाये ।
एक दूजे को देखहु पलट न सकहु
दोनों पर कुसुम-शर बरसे,
अवश हुये देह चरन चल न सकेह
पुलकित तन-मन तरसे ।
सुबल समझकर सब रोके राधा को तब
हाथ पकड़ के ले गये कान,
कान्हाप्रिया कहे, ‘‘राधा को कौन समझाये ?
कानू के लिये तरसे है मन” ।
[1] सोने की थाली भर गयी
[2] balcony
[3] दिन का अन्त होते हुये देखकर
[4] केले का बगीचा
[5] गाय
[6] घर की तरफ मूंह कर लिया
[7] भागे
[8] बहुत ज्यादा
[9] कन्धे पे कमली नामकी बछिये को उठा लिया
[10] दाऊजी मदहोश हाथी की तरह चल रहे हैं
[11] गौओं के खूर से उठे
[12] धूल से नहाये हुये