” कानन में श्याम ही श्याम “

दोनों के चेहरे देखकर दोनों को हुआ धन्द[1],

राई कहे तमाल, तो माधव कहे चन्द ।

                     

धड़कनें रुक गईं, बाकी रहा सिर्फ देह,

न जाने कैसा जादू कर गया यह नेह ।

 

ऐ सखि ! देख ज़रा करके विचार !

कैसा है इश्क़ जिसका नहें पारापार ।

 

धनी कहे, ‘’ कानन में श्याम ही श्याम,

न  जाने अब मेरा क्या होग परिणाम ।‘’

 

चकित होकर कहे नागर शेखर कान्हा,

धरती आसमान  देखूं राई के समाना ।

 

जब दोनों ने लिया दोनों को पहचान,

दोनोंके दिल में चूभ गये पांच बाण ।

 

दरशन कर नयन-्नयन से बहे लोर,

सर से पांव तक पुलक में विभोर ।

 

देखो ! देखो ! दोनों के प्रेम-तरंग !

कितने कितने भाव से भर रहे अंग ।

 

दोनों के अंग से पसीन बह जात,

गदगद कण्ठ, न निकले कोई बात ।

 

ऐसे कांप रहे दोनों  के अंग,

राधा-मोहन कहे, ‘’यही प्रेम-तरंग’’ ।

 



[1] भ्रम