प्रातः लीला – श्री श्री राधा-श्याम का नन्दालय के बाहर मिलन –

राह में गुज़रते वक़्त नैन हुये चार,

दिल को मिला चैन, आंखों में ख़ुमार ।

 

चेहरे पर निग़ाहें, दोनों हुए विभोर,

वक़्त का ख्याल नहीं, अचतुर चोर ।

 

माहीर सहेली पहेली को जान,

कुटील नैनों से किया सवधान ।

 

तब दोनों चले अलग राहें पकड़कर,

एक दूसरे से अजनबी बनकर ।

 

कहे शेखर – दोनों ने किया ऐसा भान,

जैसे हों  एक दूसरे से अनजान ।