राह में गुज़रते वक़्त नैन हुये चार,
दिल को मिला चैन, आंखों में ख़ुमार ।
चेहरे पर निग़ाहें, दोनों हुए विभोर,
वक़्त का ख्याल नहीं, अचतुर चोर ।
माहीर सहेली पहेली को जान,
कुटील नैनों से किया सवधान ।
तब दोनों चले अलग राहें पकड़कर,
एक दूसरे से अजनबी बनकर ।
कहे शेखर – दोनों ने किया ऐसा भान,
जैसे हों एक दूसरे से अनजान ।