खेल समापन कर बहुत ही थककर
सखा बैठे घेरकर,
भोजन सम्भार था साथ अपार
भोजन किये मस्त होकर ।
सब सखा मिलकर मंडली बनाकर
भोजन किये सुख से,
“वाह ! वाह !’’ बोलकर अपने मूंह से लेकर
सब दें कान्हा के मूंह में ।
सभी कहे, “भाई, मेरा है कन्हाई,
मुझे प्यार करे बेतहाशा,
मेरे सामने है बैठता सुख से भोजन करता
मेरे साथ रहे हमेशा ।”
ऐसा है उनका मन सुख से करें भोजन
तैरते आनन्द सागर में,
आशिक ग़ुमाये होश-हवास है यह दिली-आस
कि वह रहे सुबल के पास में ।