नवद्वीप
श्रीवास प्रांगण मध्यस्थः स्वापि भक्त गणैः सः
कदा पश्यामि गौरांग तव क्रीडित माधुरी |
निशांते गौर चंद्रस्य शयनाञ्च निजालये
प्रातः काल कृतोत्थान स्नानं तत्भोजनादिकम ।।
१
हरि हरि, कब वह शुभ दिन आएगा जब मैं अपने प्यारे प्रभु श्री गौरसुन्दर को अपने भक्तों के संग बड़े आनंद के साथ नदीया विहार करते हुए देखूँगा ? मेरे प्रभु सुरधुनी अर्थात गंगाजी के किनारे कीर्तन विलास मे मगन होकर नृत्य कर रहे होंगे । क्या मैं कभी भी वह दृश्य देखकर अपनी इन प्यासी आँखों की प्यास बुझा सकूँगा ? कब मेरे दिल की यह तमन्ना पूरी होगी ?
प्रभु श्रीवास भवन में अपने प्यारे भक्तों के साथ सुंदर भंगिम में बैठे होंगे । उनकी दायीं तरफ श्री नित्यानंद होंगे, जो उनके माथे पर छ्त्री धरेंगे और पंडित गदाधर उनकी बायीं तरफ बैठे हुए होंगे । काश ! कोई मुझे उस वक्त वहां ले जाता और मैं जी भरकर उनके मुख चंद्र को निहार सकता ! मेरे तन पुलक से भर गया होता और मैं प्रेम आनंद में डूब गया होता । और फिर ममता मयी शचीमाता मुझे बुलाकर अपने घर ले जातीं और मुझे भोजन करातीं । कवि रामानंद कह रहे हैं कि कब वह आनंदमय दिन आयेगा और मैं अपने दोनों नयनों को सफल करूँगा ?
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