राधे राधे
आज मोहन हरिकुंज सजाय रह्यो अपने कर
चारो और बुहारी सेवा दियो सुगंधित जल
कुञ्ज को नयो रूप दियो विविध फूल पता से
सुगनदीत अगरू से महक गया कुञ्ज और भी
मोहन व्याकुल बड़ा स्वागत को आज यहाँ
कब भाग्य खुले गे दर्शन से नयन व्याकुल
कुञ्ज में अकेला भागात रहा सजावट करने
सुंदर सिन्दूर की कामुक चित्र बनाये दिवारपर
रतन दीप्से उज्व्वल किया कुञ्ज अंधकार
अरुण सिन्हान्सन साथ चरण वेदी आसन
मोहन कंप रहा भानु दुलारी की यादोमे
विरह और भी जला रहा मन भारी स्म्रितिसे
सूखे पतों आवाज को समजे आने की खबर
कुञ्ज दीवार से कर लगा राह दूर तक देखा
शीतल वायु आई जो लावत किशोरि अंग गंध
हुआ प्राण संचार दर्शन से साथ सखिया
दोड़ते किया सवागत सबका और आलिंगन राइ का
चारो और सवर्ण का परकाश फेल गया
एक हाथ से गूमा रही नील कमल प्र्मसे
जो मोहन के हरदय को गूमावत भारी
गोरी राधा को अरूण कंचकी और श्याम साडी
जो करत अति आकर्षित मोहन के मन को
कर शोभित सुवरण रतन कंगन से जो अनुपम
सुंदर केश सजे और सुंदर सिन्दूर तिलक रचायो
चबाई रही पान बिड़ो करे कुञ्ज को सुवासित
राधा भी कुञ्ज के नए रूप देख भई प्रसन
बड़ो आसन दिया और गले पहने फूल माला
चरण सोभ रहे राधा का छोट्टी बेदी पर
गूंगरे स्वर मीठे कृष्ण करण को अमृत समान
चकित श्याम श्री राधा चरण आगे बेठ्यो
भूल्यो बंसी बजाना और रही भूमि पर आज
बंसी की आरधना सफल हुई जो तुम आयी
प्रेम से एक चरण लियो कर में पखार ने
नयन से अश्रु धारा बही भूल्यो जल डालना
चरण स्परसे पाई कोटि कोटि शीतलता
राधा कर पसार राख्यो मोहन बदन
चकोर की तहरे राधा मुख चन्द्र देख रह्यो
किसोरी की नयन भंगिमा बड़ी टेडी
नयन से नयन मिले जैसे युगों प्यासे
नयन की बातो से दिल भरने लगा
आज किशोरी ने कृपा से भिनज दिया
सखिया दंग रहगयी युगल रूप लीला से
विजय क्र्सना दास कहे ब्रजरज कृपा से
मोहन रखो मोर मूगट श्री चरणों में