१९
तथा राग
प्राणप्यारी राधारानी के प्रति श्यामसुन्दर की कपटता भरी शिकायतें सुनकर चित्रा सखी को बड़ा मज़ा आया । उसने कन्हैया जी की बातों पर अपनी तरफ से व्यंग्य-रस का रंग चढ़ाया । उसने कहा – “हां, हां, सच … Read more >
१९
तथा राग
प्राणप्यारी राधारानी के प्रति श्यामसुन्दर की कपटता भरी शिकायतें सुनकर चित्रा सखी को बड़ा मज़ा आया । उसने कन्हैया जी की बातों पर अपनी तरफ से व्यंग्य-रस का रंग चढ़ाया । उसने कहा – “हां, हां, सच … Read more >
१८
तथा राग
ललिता ने इतनी बड़ी तोहमत लगाई है कि किसी भी सज्जन के लिये चुप रहना नामुमकिन है । कन्हैया जी इसका करारा जवाब देते हैं । वे कहते हैं – मैं बिल्कुल निर्दोष हूं ! ललिते, क्या … Read more >
१५
राग रामकेलि
सखियों को देख कमल-मुखी,
शरमाकर आधा मुख ढंकई,
हरि-मुख-चन्द्र निहारई ।
माधवी लता के घर में,
बैठे रसवती और रसराज,
कुसुम-केलि-शय्या[3] पे दोनों विराजे,
चारों तरफ रंगिनी-समाज[4] ।
गोरी के … Read more >
१२
राग विभाव ललित
ढूंढ़ती हुईं मैया जसोमती,
आयीं कुंज-कुटीर,
दक्ष-विचक्षण[1] ने खबर दी,
चौंक उठे गोकुल-वीर ।
हरि ! हरि !
अब भी नींद नहीं खुली !
प्रीतम की गोद को आग़ोश में लेकर
शरम से नयन मूंद … Read more >
११
तथा राग
—————-
वक़्त जानकर आयीं सखिगण,
दोनों को देख हुयीं आनन्द-मगन ।
सखियों की सेवा कहन न जाय,
चांद की मेला[1] वर्णण न जाय ।
नीलगिरि को घेरे कनक की माला[2],
गोरी-मुख सुन्दर झलके रसाला … Read more >
८
राग कौराग
आहिस्ता छोड़ गोरी उठ बैठी,
नागर-राज भी जागे,
वह सुख पाने, फिर से नागरी,
सो गयी उनकी आग़ोश में ।
हरि ! हरि !
अब सुख-यामिनी-शेष,
रति-रस-भोरी[1] गोरी जोड़ी[2] सो गयी,
विगलित वसन और केश … Read more >
७
राग विभाव
वृन्दा की बातों से प्रोत्साहित होकर
शुक-शारी-पपीहा पुनः पुकारे,
सुनकर जागे दोनों, फिर से सो गये
प्रिया को गोदी से न उतारे ।
“हरि ! हरि !
जागो नागर कान्हा,
इस पापी विधि ने बड़ा दुख दीन्हा,… Read more >
६
राग ललित
—————–
वृन्दा की बातें सुन, सारे पक्षी-कुल
करत कूजन हो कर आकुल ।
शारी-शुक और कोयल करे कूजन,
कबूतर पुकारे, भौंरे करें गुंजन ।
“मौरि” “मौरि”[1] ध्वनि कर्ण-रसाल,
उस पर वानर का रव – … Read more >