Nishanta Leela 19

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तथा राग

प्राणप्यारी राधारानी के प्रति श्यामसुन्दर की कपटता भरी शिकायतें सुनकर चित्रा सखी को बड़ा मज़ा आया । उसने कन्हैया जी की बातों पर अपनी तरफ से व्यंग्य-रस का रंग चढ़ाया । उसने कहा – “हां, हां, सच ही तो है ! सखी ! यह तूने क्या कर दिया ! तूने अपने कठोर देह से इतने कोमल श्याम-अंग को इस तरह की हा्नि पहुंचायी !!”

 

दलित-नलिन-सम[1] मलिन वदन-छवि[2]

होंठ किये खण्ड-विखण्ड[3],

मिटा दिया उज्वल चन्दन-काजल,

पीस डाला मरकत-गण्ड[4]

 

शिरीष-कुसुम सम श्याम-अंग,

 और अति कठोर तेरा तन,

 ऐ सखी ! पर्वत समान कुच से,

तूने किया हृदय-चक्र मर्दन !

 

नील-कमल सम कोमल वक्ष-स्थल,

फाड़ा नख-शर से, पहुंचायी हानि,

व्यथा के मारे मूंद ली लोचन,

फिर भी बोले प्रेम की बानी[5] !

 

मन्मथ-भूपती-भय[6] नहीं तूझे,

सखियों का सम्मान किया चूर !

चित्रा-वचन सुन धनी लजाए,

देख बलराम हुआ सुख-विभोर ।



[1] पीसा हुआ कमल के जैसा

[2] श्याम का चेहरा बिल्कुल पीसा हुआ कमल की तस्वीर जैसा लग रहा था ।

[3] चित्रा का कहना था – किशोरी जु ने उनके होंठ के टुकड़े टुकड़े कर दिये थे ।

[4] पन्ना के समान चमकने वाले गाल

[5] अहा ! श्यामसुन्दर तुझसे इतना प्यार करते हैं कि, तूने इतनी व्यथा पहुंचायी, फिर भी वे प्रेम जता रहे हैं ।

[6] क्या तूझे महाराज कामदेव का डर नहीं ? तात्पर्य है, कि, जो तुझसे इतना प्रेम करता हो, उसे इस तरह सताने से, प्रेम का राजा क्रोधित हो जायेंगे ।