Radhe Radhe ! In this poem Vijay dada has described the beauty of Brajdham.
ब्रज की सुन्दरता , देखि गिरिरा
रह्यो ब्रज में छोड़ी , साथ अग्त्श्य रुषिको आज
रूप विस्तारी ,खुदको मोहित करे ब्रजजन को
मोहन की नित्य लीला, होय गोप गोपी संग
घेनु चरावे, लुकाछूपी, कुन्ड सनान , बन भोजन
और दान घटी करे माखन की लूट गवाल संग
कुसुम सरोवर, फुल्लों की सुगंध से शोभित रहे
रूप और रंग देखि राधा आवे सखिया संग
पूष्प चयन करे, सखिया संग सूर्या पूजा लिए
हाशय परिहशय और गान हुआ अन्नेक
लता हुई ,पुलकित राधा के कर सपरसे
अश्रु धारा बहावी, खिलाई रही अन्नेक पूष्प
श्याम रंग सुंदर पूष्प, एक दाड़ी पर ऊंचे
कर परसारी , कूद रही, बार बार जो मन भाया
पायल गूंगरू , बज रही ,मधुर मधुर नाद से
लाल माली वेश रूप धरी ,रखवाली करे यहाँ
राधा कर पकड़ी ,चोरी करते रोके पूछे परिचय
न कभी देखे ,आप को अन्नेक सखिया संग
नहीं लेने दूंगा, तनिक एक पूष्प बघियाँ की
शर्माय बोली , हूँ राज कन्या और तुम माली
दूर रहो , मेरा और तुम्हारे मेल कहाँ और
बेशरम हो कर, पर नरियाँ का हाथ पकड़ते
यह ब्रज मेरी ,प्यारी सखी वृंदा का और
हमारा अधिकार पूरा, रहो दूर हम से माली
हम नित्य उपासक. सूर्य देव ki और
चयन करके जायेंगे पूजन को देर करायी
गुस्सा देखि भानु दुलारी का ,लाल हुआ आन्दित
मोहित हुआ यह रूप से , सखिया हँसी अनेक
हर चेष्टा राधा की , ही आराधना मोहन की
विजयकृष्ण ,ब्रजरज कृपा से लीला सूनी