मोहन-निद्रा – विजयकृष्ण दास

जय श्री राधे
 
मोहन गोकुल में हुआ एक  साल का आज
सदा माताकी  गोद जो खेलत रहे अब भी
बड़ी प्यारी लगे माता की प्यारी नजर्य
सदा रहत यशोदा का हाथ मोहन शीर
ननद रानी  सूनवे मीठी मीठी कहानी
फरते ही   मीठी निंद्रा  में डूब जावे प्यारी
डूब गया माता का मन मोहन की माधुरी में
देख रहे नयन मोहन के मुख को जो करे मोहित
सुंदर कूंडल और तिलक जो मन को भावे
सुंदर पायल रहे कोमल चरण में रहे आब शांत
पीत धोती चमक रही श्याम बदन जो सुखदायक
उदर  हो रह्यो ऊपर निचे जो मोहन की निंद्रा भारी
नाबि मोहन की कमल सामना देख रही मात
अंग अंग निरख के हाथ से दुलार कर रही
कपोल और अधर पर  दियो चुम्बन दियो हलको
कही लाल न फिर उठ जावे यही सोच
सोच रही  कब लाला बोल ने सीखे  मैया बाबा
सोच के माता की नीर भर आये नयन
गिरे मोहन के चरण पर जो करे प्रेमा वर्षा
पायी अति शीतलता रोम रोम हुआ लाल का वयाकूल
नैन खोलके मोड़ लियो  अंग बड़ी अदा से
विजय क्र्सना दास ब्रजरज  कृपा से मोहन निंद्रा सूख देखे