ब्रज में चन्द्र अनेक
गगन खिल्यो है, आज चन्द्र पूरब
रह्यो निर्मल, गगन में शोभित
चारो और रहे , अन्नेक चमकीले तारे
शोभा रही खूब , आज ब्रज गगन पर
शीतल किरण पसरी, रही चारो और
यमुना की तरंग में ,जूम रही हलकी
कालो जल हुआ शुभ्र, देख लाल आन्दित
गोकुल लाल , का मुख चन्द्र समान
जो रहे खुले , गूंगाराले केश के मध्य
पसरी है लटे मोहन की, खुली चारो और
शीतल पवन उडा रही , जुल्फें लाल की
काले काले केश जैसे , अमावस की रात्रि
सोभा बढ़ा रही , लाल के मुख चन्द्र की
रही सखियाँ चारो और , जो तारे समान
भान दुलारी देख रही , पूरब ओर बारबार
ओर शरमाई रही , नज़रिया कर नीची नीची
लाल कहे किस बात पर, देखो पूरब को आप
आप मुखारविंद , कोटि कोटि चन्द्र करे लज्जित
ओर सपरश आप का, देत अति शीतल मुजको
सूनी बात लाल की , राधा शरमाई भारी
लाल को नील कमल, से हलको घात कियो
जो सदा कर राखी, गूमावत जो प्राण प्यारा
सुंदर लीला छबी , धयान हर्दय करी ब्रज भूमि में
विजय्क्र्सना गोपी चरण ऱज , सदा मस्तक धरे
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