Braj-makkhan aur Braj-gopin ki mahima

जुलत मोहन अकेला

जूलत रह्यो ,  बिचारो अकेला
मुरली अधर राखी , तान बजावे
पूरण रूपसे डूब गया , सुध  बिसराई
आई सब दर्शन करने , को हिलमिल
आरती भोग सामग्री , लाई साथ साथ
देख मूर्त उनकी ,कियो प्रेम से परनाम
हाशय परिहशय , कर रही साथ मिली
कंगन और पायल की , माधुरी नाद
आज ध्यान न,  तोड़ पावे लाल का
सब परेशान , और चली भुवन से बहार 
सोच रही , कैसे आज हुआ ऐसे 
किस रीती से , आब ध्यान खुले अब 
पधारे नारदजी,  देखि कियो परनाम
कृपा करी,  हमे मार्ग दिखावो दर्शन का
अनुमान लगा सकता हूँ , सोच के
लगते  है , मगन ब्रज की लिलाओ में
धयान करते है, गोकुल की रमनता क
ब्रज शोभा आगे रहे,  वैन्कुंथ तुछ अति 
बात  और चली,  लम्बी ब्रज लीला की
सून बात , ऐसी भरा  मन मत्सर से
भूल गए सब,  सूख आनंद जो दिव्य
आये दोडत दोडत ,  भूवन बहार  लाल
देख नारदजी,  कियो परनाम पर्भु
कया सेवा आपकी ,  बताओ रूशिराज
दर्शन  लालसा , और गाता  हु   ब्रज लीला
मधुर मधुर , जो करे आत्मा तरूप्त
बड़े गायनी ,ध्यानी रोते बालक समान
हा नारद ,मेरी  प्रेम साधना में मस्त था
टूटी मेरी साधना ,जब सूनी  ब्रज लीला
मोहित मेरा मन, सून आया आप समीप
पर्भु ने गुनगान  किया , आज ब्रज का  उल्लास से
ब्रज गोपिका का प्रेम , धवारिका रानी न समजे
कहती  हम प्राण , दे सकते है आपको नाथ   
कुर्बानी में हम,  उनसे कम नहीं
तुलना नहीं किस की , समय कराये गायन
नारद रही संग,  सुनाओ  गुणगान मधुर  
कही दोनों , चल बड़े कथा के लिए
सोचे रानियाँ ,   कैसे करे कुश नाथ को
छप्पन  वय्न्जन  बनाये,  लाल समक्ष 
निरखि हुई परशन , खाने लगे नाथ
आज न छोडूंगा , परसादी आप लिए
सून बात ,सत्यभामा  रानी अत्ति परशन
आखिर हमारे नाथ , हम से दूर नहीं
रानी बोली , गोपी ने अईसे भोग बनाये
नाथ कहे नहीं , मिले  रोटी माखन सिर्फ
जो तन और मन , की  मिटावे  भूख मेरी
बड़ा लोभी , अब भी उस   भोग का
हुई सब की , नजरियाँ खेद से नीची 
लाल गंभीर बनके,  सब  को निरखत
धवारीका  भूमि पावन , ब्रज कथा से आज
 विजय्क्र्सना चित्त  रहे  अब गोपीजन कथा में