Radhe Radhe !
This poem is by Vijay dada.
मोहन राधा
राधा और मोहन सजे सुंदर
श्याम रंग मोहन तो गोरी भानु दुलारी
छलिया गोपाल तो भोली राधा
काली अमास पूर्ण चन्द्र से शोभित
संग शोभित रही सखिया तारे सम
लाल भाल चमकत रत्न तिलक
रह्यो राधा हर्दय करी अति उल्लास
और राधे भाल अरूण तिलक सुंदर
जो काम यन्त्र समान करे लाल को मोहित
मोहन का चित डूबा राधा माधुरी पर
हुआ अत्ती हर्षित जो राधा मन समायो
न अब निकले , करे बिहार जो हर्दय
नाम नवीन धर्यो राधा हर्दय बिहारी
विजयक्र्सना दास ब्रज ऱज कृपा बल