Radhe Radhe – once again, after a long time, a meditation by Vijay dada.
ननदुलाल सात साल का हुआ
आज खेलन को , ब्रज गलिन में निकलो
तो चतुर ब्रज बाला ने ,पकड़ लिया
नवनीत दिखा कर , अंदर सब ले गयी
लाल को प्यार कर के , खूब खिलाया
आज तुजे ब्रज लाली के , से सजायेंगे
लाल को प्यार कर के , खूब खिलाया
आज तुजे ब्रज लाली के , से सजायेंगे
परथम दूर करी विष उग्लती बंसी
जो गून्जत रात दिन ब्रज की गली में
मोर पूँछ जो ड़ोलत मुगट संग सर से
नयन वयाकूलत करत निष् दिन
छीनली ल्कुट्टी जो लके गूमत गैया संग
भर्मत बन बन और रहे हम से दूर
कंधे से लहराता दुपट्टा चमकीला
जो भूलत चन्द्रा सखी कुञ्ज अन्नेक बार
कोटि सूर्य से अधिक देदिपयामन
अनेक चन्द्र किरण से अती शीतल
घाघरी रख कर दूर की पीत धोती
पहनाई लाल चमकीली कन्चुकी ,
घाघरी सुंदर केश रचना करी ,
कटी तक जूले सुंदर चमेली की माला से,
फिर गूंथी सिन्दूर की सुंदर सीमा ,
करी केस बिच जो एक सखी ने भाल तक ,
हलकी खेंची साथ में चुम्बन दिया,
मधुर भाल पर कर नीली ,
पिली और लाल छोड़ी से सजाया
कंठ सजाया सुंदर मोतिन माला से
सुवरण पायल चरण रही ,
सुवरण पायल चरण रही ,
रूम्जूम रूम्जूम कटी को सजाया ,
अनेक घंटियों से कानन में जूले कूंडल , जब लाल चले
सुंदर नथनी जो एक करण तक लम्बी
अधर को लाल रंग सूरमा से रंजित
नयन और भाल के आसपास करी बिंदी रचना
विशाल नयन को काजल से सजाया
दोनों भाल हल्का रंजित किया शूभर धर्व्य
जैसे नीलगगन पर जगमग जगमग तारे
नाखूनी को रंजित किया लाल रंग से
कर और चरण अद्भूत सोभे मेहँदी से
कमल अन्नेक रचाए नाभि की आसपास
जैसे पुलकित यमुना के किनारे खिले
टिका किया जैसे बीज का चन्द्रमा
जो रहे जटा शिव शंकर शिस
गुलाब को अत्तर छिड्क्यो हलको अन्ग
शिर लाल चूनड़ी , घून्गत निखाल्यो भारी
नख से सिख तक हुआ श्रृंगार पूरण
सखिया कहे देखो हमारे नयन अंदर छ
बी
जो आप अब बने लाल से लाली ब्रज की
देख , सूनी बाते शरमाई करी नजर भूमि पर
ब्रज गोपिका बड़ी उदार चित वृति की
जो दिया आज अपना श्रिंगार प्रेम से
यह श्रिंगार की महिमा ब्रज भूमि से ही मेल
लाल के मन हुई चित्र विचित्र अनुभूति
खुद अन्नेक आश्चर्य में डूब गया है
विजयक्र्श्ना कहे लाल हूर्दय नहीं मिला आप को
ब्रज गोपियोका जो मधुर प्रेम से भरा.
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