Sri Sri RadhaGokulananda (Red Antique)

व्रज धाम शोभा प्यारी
जो गूंजत शुक पीत भ्रमर मोरन से
कदम्ब  और तमाल  यमुना तट से सजे
गोवर्धन मध्य में  सदा ब्रजवासिन सुखकारी
राधाकुंड और श्याम्कुंड गिरिराज को नयन
जहाँ  श्यमाश्याम  रहत हरखत मिलन से
आज पधारे दोनों श्री तून्ग्विध्या सखी  कुंज
राधाकुंड शोभत अष्ठ सखियों की कुंजो से
पक्षिम की और श्री तून्ग्विध्या सखी कुञ्ज
जहाके वृक्ष, हिंडोले,बरामदे ,पूष अदि सब अरूण रंग
आये इस कुंज  दोनों और सजे रहे अरूण वस्त्र से

धारण करी रहे सुंदर आभूसन जो अति मन भावक
दोनों कंठ सजे  अरूण अलंकार और कर कंगन से
भाल तिलक अरूण और कमर सजी सुन्दर दोउ
अरूण चरण सजे सुंदर अरूण मोती के सजावट से
सखिया रही सजी अरूण वस्त्र से , रहे लाल सूख दाई
लाल नयन अनुराग से देखत  लाली के नयन
रहत लाली अरूण अधर पर, लाल की नज़रिया
लाली धारण कियो , अरूण पुष्प एक कर जो अनुराग प्रतिक
लाल भ्रमर मन मंडराई रह्यो लाली के पुष्प पर
रसपान करी रह्यो. रसराज  लाल बुरी आदत
चम्प्लाता कुंज जहाँ सब होंत सुभ्र रंग ही
लायी एक सखी देर से  लेकर सुभ्र माला
मोहन देख रह्यो राधा  वदन  जो रही माला
श्यामसुंदर दास मन अति  उल्लास, युगल सूख से