वृन्दावन – १०

 

 

२८

 

सब सखियाँ मस्ती में आ जायेंगीं । उनमें कुटिलता का रस तो है ही । फूल चुनने के बहाने वे प्राणनाथ के संग खिलवाड़ करेंगे । झूठ मूठ झगड़ा करेंगे । तुम भी कपट क्रोध में आकर मुझे आनंदित Read more >

वृन्दावन – ९

२१

 

धनी रंगिली मन्दिर में आनन्दित होकर बैठी होंगी । सखियां उन्हें घेरी हुई होंगी । सब मिलकर कितने हंसी-मज़ाक करोगी । क्या मैं वह दृश्य देख पाऊंगी ?

 

माता ब्रजेश्वरी चन्दनकला के हाथ में नीले रंग का वसन देंगी, Read more >

वृन्दावन – ८

१६

 

 

व्रजेश्वरी कहेंगी – “ सुनो, मेरी सुंदरी गौरी, तुम तो वृषभानु महाराज के कुल के सूरज हो । पूरे त्रिभुवन में तुम्हारा यश विस्तारित है । यह तो मेरे घर का सौभाग्य है कि तुम यहाँ पर आई हो Read more >

वृन्दावन – ७

१०

 

बड़े ही उत्कृष्ट धूप और अगुरु जलाकर उससे तुम्हारे भारी केश सुखाऊँगी और फिर उसमें चंद्र चूरण लगाऊँगी । तुम्हारे केश भार को हाथों में पकडकर , सोने की कंगी से धीरे धीरे शोधन करूँगी । हा हा मुक्तकेशीRead more >

वृन्दावन – ६

तुम्हारे अंगों को सुगन्धित तेल से मार्जन करूँगी । वह तेल कैसा होगा ? वह गुलाबी रंग का बहुत ही मनोरम तेल होगा । और उसमें ढेर सारा नया कुंकुम मिश्रित होगा । तुम्हारे तन पर उबटन लगाकर,  फिर, आँवले Read more >