निशान्त लीला १८

१८

तथा राग

ललिता ने इतनी बड़ी तोहमत लगाई है कि किसी भी सज्जन के लिये चुप रहना नामुमकिन है । कन्हैया जी इसका करारा जवाब देते हैं । वे कहते हैं – मैं बिल्कुल निर्दोष हूं ! ललिते, क्या तुम जानती हो तुम्हारी इस तथा कथित भोली भाली सखी ने मेरे साथ क्या सुलूक किया है ? तो सुनो………

 

पहले तो अधर में है लाली लगाती,

जिससे मदन-शर[1] छोड़ जर्जर[2] करती ।

 

नख में है इतनी शक्ति,

वक्ष फाड़ दिल को मरोड़ती ।

 

कंगन हैं या खड्ग कटीले,

उस पर अधर-स्पर्श ज़हरीले ।

 

पूरे तन को घायल किया,

जबरदस्ती मुझ को लिया ।

 

सुन सहचरी, तेरी सखी नहीं भोली,

मुझे फंसा कर देती है गाली !

 

रस-औषध देकर मुझे है तपाती,

बाद में मुझे ही बदनाम करती !

 

भुज-बन्धन[3] से किया दिल को पीड़न

कुच-पर्वत[4] से फिर किया मर्दन[5]

 

अरे, इसकी रति अति दुर्भर[6],

घायल किया सारा कलेवर ।

 

मैं ही जानूं रजनी कैसे बिताई,

अब सुबह को थोड़ी नींद आई ।

 

मुझे मूर्छित देख कर भी न आयी दया,

उस कठोर-हृदय ने जाने न दिया ।

 

सरल मुझे पाकर, की जोरा जोरी,

मन्मथ-अभिलाषा[7] की है पूरी ।

 

ऐसा कह कर राधा-वल्लभ,

चेहरे पर रखाकर-पल्लव[8]

 

ऐसी मधुर-वाणी पे बलराम,

निछावर करे अपने पराण[9]



[1]कामदेव का शर

[2]झकझोर देना

[3]बाहों के बन्धन

[4]पर्वत जैसे स्तन

[5]बुरी तरह से मारना

[6]कन्हैया जी कहते हैं कि किशोरीजु की रति-उत्तेजना बड़ा् बडी ही कष्टदायक है ।

[7]रति-केलि की इच्छा

[8]श्याम सुन्दर ने कमल जैसे हाथों से अपने चेहरे को ढंक लिया ।

[9]प्राण