राग भैरवी
सोये हैं गोराचांद विचित्र पलंग पर,
शयन-मन्दिर में शय्या अति मनोहर ।
प्रेमालस में अवश हैं नटराज गौर,
कैसे कहूं अंग-शोभा, शब्द नहीं और ।
मेघ[1] की बिजली[2] किसीने छानकर,
गोरा-अंग बनाया रस घोलकर ।
विचित्र तकिया, शय्या अति मनोहर,
वासुदेव घोष देखे हरषित होकर ।