राग बिलोवार
कुवलय[1]-नील-रत्न[2]-दलितांजन[3]
मेघ-पुंज जैसे वर्ण सुछन्दा,
कुंचित केश पे सजे मोर-पंख
अलका-वलित[4] ललितानन[5] चन्दा ।
आवत रे श्याम नव-नागर
भाविनी-भाव-विभावित-अन्तर[6]
दिन-रात नहीं जाने और ।
मधुर-अधर में हास अति मनोहर,
उसपर सुमधुर मुरली विराज ।
भौं-विभंगिम[7] कुटील निरीक्षण,
कुलवती दीवानी[8], दूर भये लाज ।
गजपति-भांति गमन अति मन्थर[9],
मणी-मंजीर बजे रुनझुनिया,
देख कर सैकड़ों मन्मथ मूर्छाये,
गोविन्द दास कहे धन्य धनिया[10] ।
[1] नील कमल
[2] नीलमणि
[3] दलित कज्जल, जो एक उज्ज्वल रसायन है । यह पारा और पारद से बनता है ।
[4] चूर्ण कुन्तल से घेरे हुए
[5] कलात्मक चेहरा
[6] श्याम का अन्तर (दिल) भाविनी (किशोरी जु) के प्रेम-भाव से विभावित (चिन्तनशील) है ।
[7] श्यामसुन्दर बड़ी कुशलता से भौंहों नचा रहे हैं, और वक्र निगाहों से निरीक्षण कर रहे हैं।
[8] अच्छे कुल (परिवार) की नारी भी दीवानी हो गईं और उनकी लज्जा दूर हो गई ।
[9] श्यामसुन्दर की गति का वर्णण
[10] धनिया का दो अर्थ हो सकता है – १) धन्य २) धनी, अर्थात श्यामसुन्दर ।