अभिसारोचित रूप

राग बिलोवार

 

कुवलय[1]-नील-रत्न[2]-दलितांजन[3]

मेघ-पुंज जैसे वर्ण सुछन्दा,

कुंचित केश पे सजे मोर-पंख

अलका-वलित[4] ललितानन[5] चन्दा ।

 

आवत रे श्याम नव-नागर

भाविनी-भाव-विभावित-अन्तर[6]

दिन-रात नहीं जाने और ।

 

मधुर-अधर में हास Read more >

आग बहुत-सी बाकी है

भारत क्यों तेरी साँसों के, स्वर आहत से लगते हैं,
अभी जियाले परवानों में, आग बहुत-सी बाकी है।
क्यों तेरी आँखों में पानी, आकर ठहरा-ठहरा है,
जब तेरी नदियों की लहरें, डोल-डोल मदमाती हैं।

मोहब्बत है बेपनाह

Radhe Radhe !
शान ए वतन से हमको मोहब्बत है बेपनाह

वर्ना चलती तेग पर सीना अड़ा देता है कौन ?

बहुत गौरी गजनी आये थे सवार आयत ए सैफ

देखने आये थे हिंदी तेग चमकाता है कौन ?

खून

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