19 January : ‘Kashmiri Hindu Exile Day’ !

Radhe Radhe ! 

India will celebrate its 63rd Republic Day on 26 January 2012, but still lakhs of Kashmiri Hindu Pandits are living as ‘refugees’ in their own country. These Kashmiri Hindus had to flee away from their ancestral homes on 19 January 1990 due to fear of Islamic Militants. Today lakhs of Kashmiri Hindus are living in very much pathetic conditions in different parts of India and many of them died as they were not able to cope up with the climate change and worst living conditions.

On this grieveous occasion we present a heart-rending essay by a Kashimiri pandit. 

My Name is Not Khan

 

माय नेम इज़ नॉट खान—–
एक कश्मीरी पंडित की पीड़ाः

मेरा दुर्भाग्य है कि मैं हिन्दुस्तान में रहता हूँ और हिन्दू हूँ। मैं खुशनसीब नहीं हूँ क्योंकि कि मेरे नाम के साथ ‘खान’ नहीं जुड़ा है। दुर्भाग्य से मेरे नाम के साथ मेरा उपनाम कौल जुड़ा है। मैं एक हिन्दू परिवार में पैदा हुआ। मुझे अपने परिवार के साथ कश्मीर छोड़ना पड़ा। लेकिन मैं इतना सौभाग्यशाली नहीं हूँ कि करण जौहर मेरे परिवार के साथ हुई ज्यादती को लेकर फिल्म बनाए। आज तो ये फैशन हो गया है कि अगर आपके नाम के साथ खान जुड़ा है और आपके साथ कोई ज्यादती हुई है तो देश भर का मीडिया उसे खबर बनाएगा और सुर्खियों में उछालेगा। फिल्मी दुनिया में बैटे ‘देशभक्त’ फिल्म निर्माता निर्देशक किसी खान पर होने वाले अत्याचारों पर फिल्म तक बना देंगे। अमरीकी एअरपोर्ट पर एक शाहरुख खान के जूते और मौजे उतरवा लिए जाएँ तो पूरे देश का मीडिया छाती कूटने लगता है।

लेकिन एक बार फिर यही कहना पड़ रहा है कि मैं ‘खान’ नहीं कौल हूँ।

जरा मेरी आपबीती भी सुन लीजिए!

मेरी माँ और बहन के साथ बलात्कार के बाद उनकी हत्या कर दी गई। मेरी 6 साल की बच्ची जिसके सामने एक ‘खान’ द्वारा उसके भाई, बहन और पिता की हत्या की गई और उसकी बहन के साथ बलात्कार किया गया, लेकिन इस भयावह और शर्मनक घटना पर न तो कोई मेरे आँसू पोछने आया न ही कोई फिल्म बनाने आया।कश्मीरी हिन्दुओं के साथ कश्मीर में हर दिन हो रही ज्यादतियों के खिलाफ कोई फिल्म नहीं बनाएगा क्योंकि कश्मीरी हिन्दु ‘खान’ नहीं है, दुर्भाग्य से हम कौल हैं। जब हम हमारे हितों की लड़ाई लड़ने वाले नेताओं को देखते हैं तो पाते हैं कि उन्होंने हमारी लड़ाई लड़ने के नाम पर बड़े बड़े बंगले बना लिए हैं। उन्होंने दूसरे राज्यों के स्कूल और कॉलेजों में हमारे लिए आरक्षण भी करवा दिया, लेकिन किसी ने कभी यह कोशिश नहीं की कि हम अपने वतन, अपने कश्मीर में अपने ही घरों में वापस लौट सकें। इन बेचारे नेताओं की प्राथमिकता अलग है, वे तो हमारे पड़ोसी आतंकवादी देश के जिहादियों के कार्यक्रमों पर अपने बयान देते हैं, और हमारी समस्या पर सेमिनारों में उपदेश देते रहते हैं।

इस तरह ये लोग हमारे साथ खेलते रहते हैं, क्योंकि मेरे नाम के साथ ‘खान’ नहीं, ‘कौल’ जुड़ा है। मैने इस बहुचर्चित फिल्म माय नेम इज़ खान का ट्रैलर देखा है और मुझे उम्मीद है कि ये फिल्म भारत में अच्छा कारोबार भी किया होगा .इस फिल्म में इस बात का उल्लेख तक नहीं है कि आतंकवाद खतरनाक होता है, और धर्म के नाम पर आतंक फैलाने वाले देश के ही नहीं मानवता के दुश्मन भी होते हैं। लेकिन एक विदेशी एअरपोर्ट पर सुरक्षा जाँच के दौरान, जो देश नहीं चाहता कि उनके यहाँ दोबारा 9/11 जैसी घटना दोहराई जाए, एक खान के जूते उतरवा लेने पर इस देश में फिल्म बनाई जाती है। लेकिन कश्मीर में जहाँ परिवार के परिवार उज़ाड़े जा रहे हैं, उनका गुनाह मात्र इतना है कि वे हिन्दू हैं, उनके परिवार में’पाकिस्तान से आने वाले खान’ घर के बड़े-बूढ़ों के सामने बलात्कार करते हैं और हत्या कर देते हैं, ऐसी वीभत्स और मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाओं परकोई करण जौहर फिल्म नहीं बनाता। कोई करण जौहर पाँच साल की उस बच्ची सीमा की सिहरन पैदा कर देने वाली आँखों देखी पर फिल्म नहीं बनाएगा, जिसके माँ-बाप और भाई को एक हत्यारे ने चाकुओँ से गोद डाला। क्योंकि उसके पिता कोई ‘खान’ नहीं थे, वे तो अभागे हिन्दू थे और उनका उपनाम कौल था।

यह इस देश का और हिन्दुओं का दुर्भाग्य नही तो क्या कि आज इस देश में हिन्दू होना एक अपराध हो गया है और अगर आप हिन्दू हैं तो आप पर होने वाले अत्याचारों और आतंकी हमलों की खबर खबर नहीं होती क्योंकि आप एक हिन्दू हैं और आप इस देश को, देश के झंडे को और देश की संस्कृति से प्यार करते हैं। सरकार जब कश्मीर मुद्दे पर बात करना चाहती है तो उसे कश्मीर से विस्थापित किए गए मजबूर कश्मीरी पंडित नजर नहीं आते, वह उन्हीं लोगों को और उन्हीं मुस्लिम नेताओं को बातचीत के लिए बुलाती है जो इस देश का विभाजन करना चाहते हैं और कश्मीर को पाकिस्तान को सौंप देना चाहते हैं। हम खान नहीं है इसलिए हम दिल्ली के जंतर मंतर पर लावारिस से टेंटों में अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह पड़े हुए हैं। यह हमारा दुर्भागय है कि हमारे नाम के साथ खान नहीं जुड़ा है। अगर हमारे नाम के साथ खान जुडा़ होता तो फिल्मी दुनिया के कई दर्जन करण जौहर यहाँ फिल्म बनाने आते कि देखो इस देश में अल्पसंख्यकों के साथ कितना अत्याचार हो रहा है।

करण जौहर की इस फिल्म को लेकर मैं खूब रोया, मैं एक बेटे के पिता तरह रोया, क्योंकि मैं चाहता था कि इस फिल्म की कहानी किसी भारतीय की कहानी हो, एक ऐसे भारतीय की, जो ऑटिस्म जैसी बीमारी से ग्रस्त अपने बेटे को लेकर परेशान है। लेकिन देखिए इस फिल्म के हीरो शाहरुख खान ने एक अखबार को दिए साक्षात्कार में क्या कहा है, शाहरुख खान कहते हैं, “मैं इस्लाम का राजदूत हूँ।” इससे दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक स्वीकृति और क्या हो सकती है कि एक व्यक्ति जो भारत में बनने वाली हिन्दी फिल्मों में भारतीय या यूँ कहिए हिन्दू किरदारों के नाम से देश भर के लोगों में लोकप्रिय हो जाता है, वह अपने आपको इस्लाम का राजदूत कहता है। अगर शाहरुख खान इस्लाम के राजदूत हैं तो उनकी जगह फिल्मी दुनिया नहीं, देवबंद है, उनको वहाँ बैठकर फतवे जारी करना चाहिए। शाहरुख खान को यह नहीं पता या वो ये स्वीकार करना नहीं चाहते कि उनकी लोकप्रियता एक मुस्लिम होने के नाते नहीं बल्कि एक फिल्मी हीरो होने की वजह से है। उनको इस देश के लोगों का प्यार और सम्मान इसलिए नहीं मिला है कि वे मुस्लिम हैं, बल्कि इसलिए कि वे एक भारतीय अभिनेता हैं।

मुझे नहीं लगता कि अमिताभ बच्चन या ह्रितिक रोशन शाहरुख खान जैसा सोच रखते होंगे। लेकिन हिन्दू नाम वाले इन महान अभिनेताओं ने कभी इस बात पर गौर किया कि कश्मीर से विस्थापत हो रहे और आतंकवाद के शिकार कौल और कश्मीरी पंडितों पर फिल्म बनाई जाए। गोधरा कांड को लेकर हल्ला मचता है। क्या एक भी मुस्लिम नेता ने आज तक कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भगाए जाने के खिलाफ कोई बयन दिया?

अब एक और घटना से आप जान सकते हैं कि इस देश में खान होने का क्या मतलब है।

अगर आप खान हैं और किसी रेल पटरी पर आपका शव पड़ा मिले तो पूरा देश और देश भर का मीडिया और मानवाधिकार आयोग इसको लेकर हल्ला मचाएंगे। संयोगवश वह भी रिजवान खान था। और माय नेम इज़ खान में भी एक रिज़वान खान है। रिज़वान की मौत को लेकर एक पुलिस आयुक्त तक के खिलाफ कार्रवाई हुई। लेकिन अगर आप कोई शर्मा या कौल हैं और आप श्रीनगर में किसी अमीना युसुफ नामकी लडकी से प्यार कर बैठते हैं तो पुलिस आपके घर में घुसकर आपको पकड़र ले जाएगी और आपकी लाश भी नहीं मिलेगी। इस भयावह घटना पर राष्ट्रीय मीडिया तो क्या कोई स्थानीय अखबार भी दो लाईन की खबर भी नहीं देगा। क्योंकि मरने वाला कोई खान नहीं, अभागा हिन्दू है, जिसने एक मुस्लिम लड़की से प्यार किया।

फिल्मी दुनिया का कोई करण जौहर हिन्दुओं पर हो रहे इन अत्याचारों को लेकर शायद ही फिल्म बनाए, अगर बनाएगा तो वह संप्रादायिक हो जाएगा, क्योंकि इस देश में जब कोई हिन्दुओं के हित में बात करता है, तो लोग उसे ‘साम्प्रदायिक’, ‘भक्तिहीन’ ‘भजन से मूंह मोड़ लिया’ और भी न जाने क्या क्या कहते हैं ।जो मुस्लिमों के पक्ष में आवाज उठाता है, वह धर्म निरपेक्ष कहलाता है, भजनशील कहलाताहै, शान्तिदूत, भगवद-प्रेमी कहलाता है। पर ये लोग नहीं जानते कि वह दिन दूर नहीं जब मुस्लिम मजोरिटी हो जायेगी, तब वे लोग इन्हीं ‘शान्ति-पूर्ण’ ‘प्रेमी’ ‘रसिक’ भक्तों को चैन से न भक्ति करने देंगे, और न भजन-साधन । अरे, तब श्री कृष्ण-जनमभूमि ही नहीं बचेगी, भक्ति तो दूर की बात है ।