निशान्त-लीला – १

राग भैरवी

सोये हैं गोराचांद विचित्र पलंग पर,

शयन-मन्दिर में शय्या अति मनोहर ।

 

प्रेमालस में अवश हैं नटराज गौर,

कैसे कहूं अंग-शोभा, शब्द नहीं और ।

 

मेघ[1] की बिजली[2] किसीने छानकर,

गोरा-अंग बनाया रस घोलकर Read more >