Neelu on Chandan-yatra
चोरी हुई है भारी चोरी हुई है भारी
मेरे घर में चोरी हुई कल को
लुट गई ब्रज गली शोर कर रही एक नारी
ब्रज वासी निकल आये आगन में सुन के पुकार
किस ब्बात से चिला रही जरा खोल के बता दे
और दौड़ के कहाँ जा रही भोर भये इतनी
ब्रज भूमि ऊँची नीची संभल के पैर रख
बावरी बन के ब्रज में कयूं भाग रही
माखन लूट्यो मटकी फूट घर में चारों ओर
घर में रहत कमल की खुशबू जो मोहन की है
ननद रानी को बतलाऊंगी जो मानत नहीं बात
लालन की बात आज खोल दूँगी सब चोरीं की
ओ यशोदा तू जरा महल से बहार निकल के मेरी बात सून ले
माता बोली घर में काम रहत बड़े और किस बात को सुभाह में आई
लाला के लिए मखा निकल रही हूँ गंगी गयां का जो सदा लगत प्यारा
अरे जरा साँस ले हलको और बात कर थडी मीठी
आदत मेरे मोहन की नहीं है चोरी की है ननंद की नव लाख गैया
ब्रज में घर घर लाला सब का क्यूं मोहन को नाम बिगड़े
मोहन को चोरी करते मेने देखा और उठी तो भाग्यो खिड़की से
मेरो सपनो न समज और मोहन के चरण छाप घर में पड़ी
भूल गयो यह बंसी जो प्यारी जब दोद्यो खिड़की से
संग में सखा और बड़े बंदर जो भूखे डोल रहे मोहन साथ सदा
यह गोपी सबको बता रही है भाग्य बड़ो और समज न पाए कोई
आज भोली गोपी न करे फरियाद किन्तु करे बड़ाई
जो मोहन बन्यो चोर आज और जनम जनम के चोरी गयो पाप पुन्य सब
यह गोपी के भाग्य पे बलिहारी जाऊ और सदा ब्रजरज लग्गाऊ
ब्रजराज की यह ब्रज लीला ब्रजरज की क्रुपा से ही कोई जाने
विजय कृष्ण दास मांगे इश गोपी गर्भ में बस अंतिम जनम
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