कच्चे कंचन सी कान्ति कलेवर की,
चितवन कुटील सुधीर,
बहुत पतली चीर से ढंके हैं तन
जावत सुरधुनी तीर ।
ओ सजनी, गौरांग सुन्दर की अदायें,
कर गयी मेरे दिल को पार,
चन्द्रकिरण के साथ मिलकर गौर द्युति
गज-गति सी चले अनिवार ।
नारी के जैसे बांयें चरण आगे कर
ऐसे करे संचार,
कैसा यह भाव, कैसी यह रति,
मुझे न सूझे विचार ।
चकित नयनो से दस दिग देखें,
अलखित चांद मुख हास,
ऐसे पहुं के चरण कब मिलेंगे,
यही राधामोहन की आस ।