तप्त हेम जैसे गोरा उसपे हास सुमधुरा
जग जन नयन-आनन्दा
प्रेम-स्वरूप मूरत अपरूप
चेहरा पूनो का चन्दा ।
आज यह नबद्वीप-चन्द,
कामिनी काम जैसे मनो-भाव कुछ ऐसे
कि गति गज जैसी मन्द ।
मध्यान्ह में फिर से तन ढंककर वसन से
कहे, ‘’चलो पूजें सूर’’
कम्प पूलक घाम गदगद स्वर अनुपाम
जल से नयन परिपूर ।
बांये हाथ से वसन खींचकर ढंके वदन
चंचल चकित नयन
राधा-मोहन दास के चित में अभिलाष
उन चरणों की है लगन ।