पीताम्बर घनश्याम द्विभुज सुन्दर,
कण्ठ में वनमाला, गुंजे मधुकर ।
शिखण्ड-शिखण्ड उस पे विराजे,
शरद के कोटी शशी मुख सुविराजे ।
कमल की निन्दा करे कमल-नयन,
कर्णिका-पुष्प कनफूली विभुषण ।
पक्के विम्बफल जैसे मधुर-अधर,
केयुर, अंगद, मुद्रिका से शोभे दोनों कर ।
अधर पे मुरली, उर पर नाना रत्न-हार,
मणिराज कौस्तुभ मणि शोभे अपार ।
वृन्दावन कल्पतरु-तल शोभे सिंहासन,
प्रिया-सह कृष्ण-चन्द्र को सोचो अनुक्षण ।
उनके बायें देखो राधिका धनी,
सर्व-गुण-निधि महाभाव स्वरुपिनी ।
सुक्ष्म नील वसन शोभे अंग पर
कान्ति देख कमल मुर्झाये शरमाकर ।
साजन को देखे सुन्दरी चकोर-नयन,
प्रीतम के मुख में करे ताम्बूल-अर्पण ।
प्रमुख अष्टदलों पर अष्टसखियां विराजे,
उपदल केशर पर सखी-मञ्जरियां साजे ।
कल्पतरु तले स्वर्ण-सिंहासन शोभित,
जिसपे राधा-श्यामसुंदर हैं विराजित ।
एक-दूसरे में खोये हैं होके प्रेम-मगन,
प्रेम से ध्यान धरो होके एकाग्र मन |
सहचरों के साथ गोरा-राय विभोर
योगपीठ पर खड़े हुये देख सबकी ओर |