सखियों के आगमन देखकर हर्षित मन
धनी उठ बैठे शेज पर,
नयन मेलकर मूंह धोकर
सजे दिल भरकर ।
धनी हैं गुणवती सभी कलाओं मे कलावती,
जानकर श्याम का उद्देश,
मदन-मोहन के मन को हरने के कारण
धरतीं हैं निरुपम वेश ।
कुंचित केश में वेणी काले परान्दे की साजनी,
मृगमद से लिपे अंग,
नील वसन में धनी ने सजाया तनि,
नील भुषण से भरे अंग ।
हाथ में नील कमल चलीं करने मनोरथ सफल,
सारथी है “साहस-राज”,
मन्मथ से धरकर बाज़ी चली धनी सजी-धजी
तोड़ दिया कुल-लाज ।
घेर लीं सभी जुवती बीच में बैठीं रसवती,
हर पल दिल उचाट[1],
तब कवि शेखर निकला कुंज से बाहर
और निहारने लगा बाट ।
८५
चल न सकई, हुस्न है भर,
ढारस जुगाये सखियों के कर[2] ।
कामिनी कनकलता नवीना,
त्रिभुवन में नहीं कोई तुलना ।
अब राई धनी सत्वर
निभृत निकुंज में बैठीं जाकर ।
स्वर्ण चम्पा के कुंज माझ,
वृन्दा ने रचा विविध साज ।
विनोद बिछौना, विनोद वन,
देखकर शीतल होवे मन ।
फूलों के बीच बैठीं राधिका,
केश में फूल गुंथे विशाखिका ।
खिसके वसन, लजाये बाला,
ललिता पहिनाये मोहन-माला ।
गाये कोयल मधुर गीत,
द्रवित हो गया धनी का चित्त ।
दीवाना इश्क़ से रंगा मन,
चारों तरफ घेर लिये सखियन ।
प्राणप्यारे को न देख वन में,
आग धधकने लगी मन में ।
कहे शेखर, “सुनो राई,
नागर न आवे, देखूं जाई ।
ओहो ! वे तो घर पर नींद में भोर “
झटपट शेज त्याजे नन्दकिशोर ।
जल्दी से निकुंज की ओर करे गमन,
“कहीं रात न बीत जाये”, दिल में धड़कन ।
८६
जलधर रूप, श्यामल कान्ति,
युवती-मन मोहे, वेश ऐसी भांति[3] ।
“धनी अनुरागिनी”, जानत सुजान[4],
घोर अन्धेरे में किया प्रयाण ।
परस्त्री से प्रीत की ऐसी ही रीत,
चले सूने पथ पर, नहीं कोई भीत[5] ।
कुसुमित कानन, कालिन्दी तीर,
वहां चलके आये गोकुल-वीर ।
शेखर पथ पर जाकर मिले,
नागर को किया राई के हवाले ।
अपरूप राधा-माधव मिलन,
उल्लसित होकर दोनों करें दरशन ।
आकूल अमृत सागर में डूब गये,
मधुर-केलि दोनों के, कोई कैसे कहे ?
८७
दोनों देखें दोनों मुख सीमा नहीं ऐसो सुख
पुलकित होवे दोनों तन,
चारों तरफ सखियों का ठाट लगे जैसे चांद का हाट,
बीच में सोहे राई-कान ।
दोनों के वचन सुनूं अमृत से अधिक मानूं
सखियों के कान होवे शान्त,
देखकर मधुर-मिलन उल्लसित हुये सखिगण
फूलों से सजायें राधा-कान्त[6] ।
ललिता के इशारे पर नर्मदा आयी लेकर
फूलहार बिन धागे के ;
पहिनाये दोनों के गले वक्ष के उपर डोले
नयन हुए शीतल सभी के ।
शेखर मीठी बातें करे, बोले वचन धीरे धीरे
बगीचे की शोभा देखने,
सुनकर चतुर कान दिल में कुछ लिया ठान
धनी के हाथ पकड़कर लगे उठने ।
८८
गलबाहें डालके घूमें दोनों, शोभा लगे न्यारी,
दोनों के रूप से दसों दिशायें होवे उजियारी ।
नव-युवतियां चलें दोनों पास,
वन की माधुरी देख हास-परिहास ।
जाती, युथी, मल्लिका, मालती, नागेश्वर,
कदम्ब, बकुल, और चम्पक मनोहर ।
तमाल-माधवी वन अति गहन-तर[7],
अशोक और किंशुक लगे सुन्दर ।
वृन्दावन फल-फूलों से है भर,
माधव-माधवी फिरें स्वजन लेकर ।
फूल-वन शोभा दोनों देखें अनुखन[8],
फल-वन देखने को किया गमन ।
आम, जाम[9], बिल्व, पिलू, गुवाक, नारियल,
बादाम, छुहारा, लिम्बू, कपित्थ सकल[10] ।
कंवला, पियाला और पनस, खजूर,
अंगूर, अनार, अननस सुमधुर ।
ताल, बेर, केले के जितने कानन,
प्रफुल्लित होकर दोनों करें भ्रमण ।
यन्त्रशाला में आये नागरी-नागर,
इस वक़्त विविध यन्त्र लाया शेखर ।