रतन थाल भरई चीनी केले मलाई
लायीं रसवती राई,
शीतल कुंज तल खुशबू सुपरिमल
बैठे नागर कन्हाई ।
हर्षित मन होकर सुप्रसन्न
भोजन करत ब्रजराय,
सुगन्धि शीतल ताम्बूल और जल
सखीगण देत बढ़ाय ।
अगुरु चन्दन श्याम अंग लेपन
फूल-पंखे से बीजन करए,
सखियों के संग करे विहार-रंग,
वैष्णव दास बलिहारी जाए ।
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सखियों की साथ राई सुधामुखी कानू के भोजन शेष
करे भोजन परमानन्द में गुण मंजरी परिवेश ।
अहा हा ! क्या खूब युगल – भोजन – केलि !
करके आचमन निभृत निकेतन चले सब सहचरी मिलि[1] ।
रतन-पलंग पर सोये राई-कानू, सखियां ताम्बूल देल[2],
एक पल में दोनों गये नींद, बलराम हर्षित भेल[3] ।
[1] मिलकर
[2] दिया
[3] हुआ