holi khelan aayo shyam , bhar bhar pichkari maro shyam ko

 

 

Radhe Radhe !

This is a loving composition by our beloved Vijay dada –

 

ब्रज रंगों से भर रहा है
रंग के बादल  चारो और
यमुना भी हुई  रंगीली जो कालि 
और ब्रज की गलिया जो टेडी मंदी
रंगों से और कोल्हाहल से सोभ रही 
ब्रजवासिन को मन रंगों से भर गयो
होली मोहन खेल्तो सखा संग
जो है सखाओ  को अत्ति प्यारो
सुध बुध बिसराय के खेलत आज
सखाओ ने अलग अलग रंग डालो
काले  काना पर आज अनेक रंग लग गयो
और मोहन के गूंगारे सुंदर  बाल
जो अनेक रंग से शोभित हो गए
मोहन भी अपना रूप देख हुआ विस्मित
मोहन रूप सब मन का कातिल हो गया
देख रहे मोहन की माधुरी प्रेम से अब
कमल नयन की  तिरछी नज़र किय्या  घायल
रह गए बेजान  सखा जो मोहन के प्राण
पल भर रंग डाल ना  सब भूल गए
दांग रह गए ब्रज वासी यह लीला देख कर
युगों की पयासी नजरिया हुई और भी पयासी
अरे  मोहन आज  हमें भूल्यो सखा की गिनती में
और नीर बह गए अखीया से तेरे चरणों तक   
ब्रज की यह लीला अब दूर से  देख  देख के
विजय कृष्ण दास प्राण अति  आनादित व्याकुल   

 

Holi hai !!!!!!  

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