प्रातः लीला – राधारानी का मां यशोदा से मिलन –

 

राई को देखकर              जोश में आकर

                मैया ने उठाया गोदी में,

चिबुक पकड़कर             चुम्बन देकर

                भीगीं आंसूवन में ।

प्रातः लीला – श्री श्री राधा-श्याम का नन्दालय के बाहर मिलन –

राह में गुज़रते वक़्त नैन हुये चार,

दिल को मिला चैन, आंखों में ख़ुमार ।

प्रातः लीला – कुन्दलता ने जटीला से कहा –

ऐसी ही  हैं ब्रजेश्वरी               उन्हें मालूम नहीं चातूरी

वे ठहरीं परम उदार,

आप कड़वी बातें कहेंगी            तो वे अभी भूल जायेंगी

और करेंगी आपसे प्यार ।

प्रातः लीला – श्री राधा नन्दालय में जाकर रसोइ, भोजन आदि करती है –

करके सोलह सिंगार                हुई खुश अपार

देख कर अपना रुख़,

कृष्ण अधरामृत             पाकर हर्षित

हुआ परम-सुख ।

प्रातः लीला – श्री गौरचन्द्र भावावेश में नन्दालय जा रहे हैं –

एकान्त में बैठे गोराराय,

पांव से सर तक             पुलक से पूरित

प्रेम-धारा बह जाय ।

प्रातः लीला -७, ८

( यशोमती मैया कन्हैया से कह रही है ) –

“राम का नील वसन क्युं पहनते हो?

सुरज उठा क्युं नहीं जगते हो?

ओ ब्रजकुल चान्द, लूं तेरा बलैया ।“

अंग-विभंग कर तन को मोड़ दिया ।[1]

“क्या Read more >

प्रातः लीला – राधारानी की रस-भरी बातें – भाग ४,५,६

अन्दर की बात कह रही हूं                मैं फिर से फंस गयी हूं

उसने जो डाला प्रीत का फन्दा,

रात-दिन रोती रहती हूं                   सिर्फ  यही सोचती रहती हूं

ध्यान में श्याम-मुख-चन्दा ।

दिल पे दिल, प्रेम ऐसा है          आंखों में Read more >