Radhe Radhe ! Our Vijay dada, like all pukka Brijwasis can not get enuf of Holi ! As a result he continues to regale us. This is his latest contribution –
होली होली सब कर ते है
बड़ा रसमय होली का खेल
होता है ब्रज मंडल में भोत दिनों तक
श्याम सदा देखत राह चटक बन
सखा संग गलियों में सदा खेले
रोकत ब्रज नारियो को जावत दधि बेचन
डाले रंग अनेक और न माने एक बात
ना माने गे जो आई होली भावत मन
ब्रज वधु छोड़ी लाज रंग देख अनेक
लाल के रंगों में जो सदा भीगी
ब्रज की नारी भी आज मटकी को छास
पलटे मोहन के अंग अंग पर पूरी
और गाल पर मले माखन और दही
कही सखिया बावरी बनी भरी आज
लाल के मूह मे डाले माखन बल से
अबला का बल आगे लाल हुआ दुर्बल
लूट बिना माल आज गवालिया को मिले
काना भिज गया दूध छास से पूरा
मधुमंगल लोभी नवनीत का पूरा
जो सीखी बुरी आदत श्याम संग से
चाटने लगा मोहन के अंग का माखन दही
भेद न पायो आज अति मधुर स्वाद को
यह ब्रज रस , ब्रज के बहार कहा अरे
ब्रज में ही बरसतो रहे किशोरी की कृपा से
विजयकृष्णदास शीध्र ब्रजरज कृपा बल से पाए