२०
तथा राग
राधारानी को शरमाते देखकर चम्पकलता का दिल भर आया, और वह जमकर उनकी तरफदारी करने लगी । उसने कन्हैयाजु को डांट दिया ।
कान्हा, यह तेरी कैसी है रीत ?
तेरी बातों में आकर प्यारी बेच दिया तन,
अब तू कहता है विपरीत !
पति से मिलाने का बहाना बनाकर,
बगीचे में प्यारी को लाया,
नलिनी-सुकोमल दुलारी-सुनागरी,
अकेली पाकर सताया !
( ललिता से -)
धनी सती-शिरोमणी, नव-कुल-कामिनी,
पर-पति सपने में न जाने,
यह नव-यौवन, अमूल्य रत्न-धन,
दूसरे के हाथ में सौंपा तूने ?[1]
( फिर श्यामसुन्दर से – )
तेरे रस में रसवती,छोड़ निजपति,
न करे भय गुरुजन से !
चम्पक लता की वाणी इतनी मधुर
बलराम-दिल सींचे अमृत से ।
[1]चम्पकलता यह वाक्य ललिता सखी से कह रही है, क्युंकि ललिता सखी ने पहले कहा था कि उसने श्याम को सज्जन जान कर राई का हाथ उसके हाथ में सौंपा था ।