प्रातः लीला – ३

इधर वह किंकरी, राधा का उत्तरी[1] पीतवास खींच लिया,

झट से नीलाम्बर राधा के वक्ष पर तेज़ी से डाल दिया ।

 

विशाखा-वचन सुन मुखरा उस क्षण हुई लज्जित अति,

 मुझे बहुत काम है, फालतु वक्त किसे है ? कहकर Read more >

निशान्त-लीला (राधा-गोविन्द) – ४

(शेखर राय)

 

आलियां[1] जागीं अलियों[2] के गान से,

चारों तरफ देखीं चकित नयनों से ।

 

 

चंचल चित्त से चलीं निकुंज की ओर,

कुसुम शेज पर दोनों सो रहे विभोर ।

 

 

विगलित[3] कुन्तल[4], विगलित वास,Read more >