निशान्त-लीला – ३

राग ललित भैरवी

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श्याम सु-नागर[1], मदन-मत्त[2] कुञ्जर[3],

ऐसो कियो रस-उन्माद[4] में,

किशोरी हमारी ननी[5] की गुड़िया,

मुरझा गई रति-अवसाद[6] में ।

 

हरि हरि !

कैसे लौटेगी धनी घर ?Read more >

निशान्त-लीला – १

राग भैरवी

सोये हैं गोराचांद विचित्र पलंग पर,

शयन-मन्दिर में शय्या अति मनोहर ।

 

प्रेमालस में अवश हैं नटराज गौर,

कैसे कहूं अंग-शोभा, शब्द नहीं और ।

 

मेघ[1] की बिजली[2] किसीने छानकर,

गोरा-अंग बनाया रस घोलकर Read more >