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राग ललित भैरवी
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श्याम सु-नागर[1], मदन-मत्त[2] कुञ्जर[3],
ऐसो कियो रस-उन्माद[4] में,
किशोरी हमारी ननी[5] की गुड़िया,
मुरझा गई रति-अवसाद[6] में ।
हरि हरि !
कैसे लौटेगी धनी घर ?… Read more >
राग भैरवी
सोये हैं गोराचांद विचित्र पलंग पर,
शयन-मन्दिर में शय्या अति मनोहर ।
प्रेमालस में अवश हैं नटराज गौर,
कैसे कहूं अंग-शोभा, शब्द नहीं और ।
मेघ[1] की बिजली[2] किसीने छानकर,
गोरा-अंग बनाया रस घोलकर … Read more >